Tuesday, December 27, 2011

हमने ने रोका आंसुओं

हमने ने रोका आंसुओं को कुछ इस तरह
के देख के खुदा भी टूट कर रो पड़ा


यों तो रहे सफर में हम जिंदगी भर
पर न जाने क्यों मंजिलों से वास्ता नहीं पड़ा


अब क्यों आये कोई मेरे दर पे ऐ खुदा
बहुत दिनों से किसी को हमसे कोई काम नहीं पड़ा

अच्छा बुरा क्या हैं समझ समझ का फेर हैं
शुक्र मना ऐ "शफ़क" तुझे वो फ़ेसला लेना नहीं पड़ा





Sunday, December 25, 2011

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

कोई मासूम न रोये भूखा सड़कों पे कही
कोई माँ झेले न ये दुख इस दुनियां में कही

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

रहें दुनिया में अमनो बहार कायम हर कही
कभी उठे न अमन की दुआ को हाथ कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

रोशनी रोशनी हो खुशियों की हर दिल में कहीं
रह न पायें गम का कोई आसूं इक भी निग़ाह में कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

कबूल हो कबूल हो मेरी दुआ ये कहीं
भर आयें भर आयें  फिर  ख़ुशी ये मेरी आँखें क्यों न कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

मैं न जाऊं ऐसे...

ऐसे कैसे, मैं न जाऊं ऐसे
तेरे ये दो नैना बांधे हैं न जाने मोहे कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

हर सुबह से रात तक इंतज़ार करूँ
ख़तम हो अब कैसे इंतज़ार मेरा, मैं न जानू कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

ऐसा नहीं के कुछ भी नहीं तू मेरा ऐ सनम
धड़कन अपने दिल की तोहे ऐ खुदा सुनाऊँ कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

चलती रहे या न चले ये दुनिया मेरी अब तेरे बिन
मैं हर पल बैठा बस ये ही सोचूं तुझको अपना मैं अब बनाऊं कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

Wednesday, December 14, 2011

खुदा ही जानता है

खुदा ही जानता है मुझे और कोई जानता ही नहीं

इतने चेहरों से ढका हैं खुद को मैं भी खुद को अब पहचानता नहीं

मुझ से ही न जाने क्यों

मुझ से ही न जाने क्यों, पूछ रही जिंदगी इतने सवाल क्यों|

रंगी ख्वाब थे जो कल के, लग रहे आज बेरंग दरों दीवार क्यों|

कल तलक तो मैं सबका था, आज सबह से बदले हैं सबके मिजाज़ क्यों|

कहने को क्या हैं कह तो हम कुछ भी दे मगर, आज ही क्यों लियें बेठे हो वो इक बात क्यों |

बेदम हो के रह गए अनजानों की तरह जब निकले तुम, पूछ भी न पाए के लगते हो इतने परेशान क्यों |

चल दर्द का कारोबार करें

चल दर्द का कारोबार करें, लिखूं मैं कुछ दर्द भरा|
तू उसको कोई साज़ दे , उम्मीद की नयी आवाज़ दे|


चल सबाब का कुछ काम करें, मये गम को इक नया जाम दे|
हैं कितने तन्हा यहाँ कितने लोग, उनकी तनहाइयों को इक रंगी शाम दे|

चल चले इस शोरो-गुल से दूर, रोशनियों भरे इस जहां से दूर|
अंधेरों में उजालों की सोचे, इन रातों को नया आफ़ताब दे|

Wednesday, December 7, 2011

लगता हैं ...

लगता हैं मयकदों में ही गुजरेगी ये जिंदगी
जब भी हम होश में आये तो हमें गम ही मिले

मुस्करायें जब भी पल दो पल के लिए
मेरे जिस्मों जां  को बस दर्द ही मिले

कौन जाने कहाँ जाएगी ये जिंदगी अपनी
जब भी सफ़र पे निकले तो हमें हादसे ही मिले

मैं क्या जानू "शफ़क" के क्या खता थी मेरी
हमने जब भी देखा उन्हें तो वो  हमसे खफ़ा ही मिले

हाँ ...

हाँ दर्द हैं इक प्यास हैं
के कुछ अनकही सी रह गयी जिंदगी


हाँ आस हैं झूठी सी हैं
के कुछ अध्रूरी सी रह गयी जिंदगी

हाँ शिकायतें हैं खुद ही से हैं
के कुछ बेनूर सी रह गयी जिंदगी

Monday, December 5, 2011

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

मन करता हैं तेरा नाम लिखूं उसपे , अपनी जिंदगी की तरह

फिर रोक लेता हूँ खुद को कुछ सोच हमेशा

याद आ ही जाती हैं हकीकत,  मुझे हर सबह की तरह

मुस्कराता हूँ देता हूँ हल्की चोट सर को अपने हाथों से

मुड़ता हूँ कुछ कदम हट के पीछे , चलता हूँ फिर करने दुनिया को सलाम हमेशा की तरह

मैं तेरी खामोशियों को चुनता हूँ

मैं तेरी खामोशियों को चुनता हूँ
                                फिर नए ख़वाब कुछ बुनता हूँ  मैं
देखता हूँ जब जब तेरी आँखों में बेरुखी
                                  तब तब अंजाम को अपने फिर से लिखता हूँ  मैं


खीचता हूँ कागज पे लकीरें
                                      तो हर बार कुछ खालीपन भरता हूँ मैं
जब देखता हूँ गौर से क्या भरा
                                       तो तुझको ही लिखा पाता हूँ मैं


हूँ भी और शायद हूँ भी नहीं
                                     बस इतना हूँ के कुछ नहीं तेरा हूँ मैं
फिर न जाने क्यों कभी कभी
                                        खवाबों में देख तुझे जिंदगी जी लेता हूँ मैं

कुछ ओंस की बूंदे लाया हूँ मैं तेरे लिए

कुछ ओंस की बूंदे लाया हूँ मैं तेरे लिए
प्यार से चुपचाप से छींट दूँगा आँखों में तेरी तुझे जगाने के लिए

कबसे यूँ ही देखता हूँ मैं तुझे सोते हुए
हल्की सी मुस्कान आती है चली जाती हैं चेहरे पे तेरे

क्या पता देखा हो तुने मुझे खवाबों में तेरे
या जान के कर रही हैं ये तू मुझे सताने के लिए

मन तो ये करता हैं के बस यूँ ही देखता रहूँ तुझे
इतेमनान से पल पल जीता रहूँ जिंदगी भर जिंदगी तेरे लिए

शब्द नहीं हैं और हैं भी तो कम हैं तुझे सब कुछ समझाने को
तू कौन हैं क्या हैं मेरे लिए दिल खोल के तुझे बताने के लिए
                       

Sunday, November 27, 2011

ये तख्तों ताज तू ही रख

ये तख्तों ताज तू ही रख,
                                    ये सोने का शहर तू ही रख|
दे दे मुझे बस वो बंजर जमीं,
                                     के शहर नया बसाना हैं मुझे||

ये ऐशों आराम दिल का चैन,
                                      ये सारी रोशनियाँ तू ही रख|
दे दे मुझे बस बेचैनियाँ,
                                   के अब कुछ कर दिखाना हैं मुझे||

ये लबों पे खुशियाँ तू ही रख,
                                       ये खुशियों से भरे बाज़ार तू ही रख|
दे दे मुझे सारे जहां के दर्दों गम,
                                        के जज़्ब कर ज़हर खुदा हो जाना हैं मुझे||

कौन रोके अब इन हवाओं को ...

कौन रोके अब इन हवाओं को|
ले जाने दो - ले जाने दो, इन्हें मुझे दूर कहीं दूर|

रहे आंसमां ये हमेशा नीला नीला क्यों|
दे दो इसे अपने दामन से रंग, देखे फ़िर हम इसे और कहे ख़ूब क्या ख़ूब||

कहने दो जो कहते हैं ये लोग|
न रोको तुम न टोको तुम, मुझे बहने दो मुझे बहने दो ओर तेरी ओर||

Sunday, November 20, 2011

इक ख़्वाब हैं, हाँ इक ख़्वाब हैं

इक ख़्वाब हैं, हाँ इक ख़्वाब हैं|

कभी झूठा भी हैं,कभी कुछ सच्चा भी हैं|
कभी कुछ भी नहीं, कभी सब कुछ|

इक ख़्वाब हैं, हाँ इक ख़्वाब हैं|

कभी कुछ सुर्ख सा,आँखों में दिखे|
कभी हल्का हल्का, दर्द बन दिल में उठे|

इक ख़्वाब हैं, हाँ इक ख़्वाब हैं|

कभी मन करता हैं, के रंग दूं सारा जहां उस से|
कभी डर के कही कोई छीन न ले, छुपाता फिरू दुनिया से उसे||

 इक ख़्वाब हैं, हाँ इक ख़्वाब हैं|


Friday, November 18, 2011

मुझे दर्द का कोई साज़ न दे

मुझे दर्द का कोई साज़ न दे,
                                         फिर से कोई आवाज़ न दे|
मैं गिरा हूँ  तो गिरा सही,
                                    मुझे बढ के कोई हाथ न दे||

तूफ़ानों  से  मैं लड़ रहा,
                               अपनी ही जिद पे अड़ रहा|
हो जाऊँ  फनाह तो फनाह सही,
                                  जिंदगी अब कोई झूठी आस न दे||

आद्त हैं अंधेरों की मुझे,
                                  कोई अब चराग़ न दे|
खुदा रख तू खुदाई अपने लिये,
                                    अपने रहम का मुझ पे इल्जाम न दे||
          


                              
                                  

Monday, November 14, 2011

खवाबों को उड़ने दो...

खवाबों को उड़ने दो,
                          उम्मीदों को जीने दो|
जिंदगी गर लगे कभी बुरी सी,
                          लम्हों को नया कुछ बुनने दो||

ख़ामोशी जरा सी होने दो,
                         अँधेरा जरा सा रहने दो|
समझ में कुछ जब न आये,
                         तन्हाइयों को जरा कुछ कहने दो||

वक़्त को यूँ ही बहने दो ,
                                 दर्द थोड़ा सा रह जाने दो|
 भुला न पाओ तुम जीसे कभी,
                                उसे याद बनकर दिल में रहने दो||



क्यों ....

वो मेरा नहीं, मैं उसका नहीं|
हैं कुछ भी नहीं,पर क्यों||

ख़ुशी निगाहों में नहीं,तमन्ना कोई दिल में नहीं|
जुबां मेरी फिर भी चुप सी,पर क्यों ||

इक नज़र वो देखे भी नहीं, कुछ कभी कहे भी नहीं |
हरदम दिल में रहे वो,पर क्यों ||

उसका वादा भी नहीं,कोई इरादा भी नहीं|
इंतज़ार सा फिर भी रहे हमें,पर क्यों ||

Saturday, November 12, 2011

खवाहिशें ही होंगी हकीकत

खवाहिशें ही होंगी हकीकत,
                                       तू चल तू चल जिंदगी|
माना की रास्तें हैं कठिन मगर,
                                       कुछ होसला तो रख जिंदगी||

आखिर अलविदा हैं सुनो

आखिर अलविदा हैं सुनो,
                                   जाना हैं फिर हमें तुम सुनो|
कह दिया था हमने जो था कहना,
                                     पर मेरी धड्कनो को अब सुनो||


कुछ अनकही,कुछ दिल्लगी ...

कुछ अनकही,कुछ दिल्लगी
                     कुछ  ओस की बूंदे, कुछ आसूं |

क्या करे ये सुबह अजीब सी हैं कुछ||


कुछ झूठी मुस्कराहटें, कुछ कड़वी बातें
                               कुछ बेगानापन,कुछ फिक्र सी दिल में|
क्या करे ये सुबह अजीब सी हैं कुछ ||


                                     

Sunday, October 30, 2011

अपनी उम्मीदों के बोझ से टूट गया

अपनी उम्मीदों के बोझ से टूट गया,
                                                   वो शज़र जो चला था आसमां छूने||

जला लिया जह्नो दिल उसने,
                                          वो जगमगाने चला था दुनिया खवाबों से अपने||

गुजर गया अनकही सी नज़्म होठों पे लियें,
                                          वो तन्हाई में सज़ाता था घर पे महिफ़िलें अपने||

कौन कहता हैं तेरे जाने से कमी होगी कुछ दुनिया में,
                                            वो आज से ही निकाले बैठे हैं कल के काम अपने||

Saturday, October 22, 2011

कर रहा आसमां कबसे

कर रहा आसमां कबसे, हमारी उड़ान  का इंतज़ार है|
कर लो पूरी सब तयारियाँ, लगता हैं वक़्त आ गया||

अब उम्मीद भी नाउम्मीद से ,और  दूर तक फैला अन्धकार हैं|
कुछ भी जतन करों, एक शम्मां जलाने का वक़्त आ गया||

 
कब तक यूँही चुप रहोगे, कब तक यूँही खुद को सहोगे|
कौन करे आज़ाद हमें इस कैद से, खुद से खुद की रिहाई का वक़्त आ गया||






Wednesday, October 19, 2011

गुजरते वक़्त में सिमटा जाता हैं

गुजरते वक़्त में सिमटा जाता हैं क्यों,
                                                       आने वाले कल से सहमा क्यों हैं|
आज को जो जी पाता हैं मुश्किल से,
                                                      उसे कल का इतना इंतज़ार क्यों हैं ||

न जाने कहाँ रख के भूल गया

न जाने कहाँ रख के भूल गया वो अपनी खुशियाँ,
                           मुद्दत हुयी उसको मुस्कराता हुआ देखे हुए|
कल ही तो लगता था ख़त्म हो जाएँगी सारी मुश्किलें,
                           आज फिर नई मुश्किलों से देखता हूँ उसे लड़ते हुए||


ऐ खुदा यूँ न बदल रोज तारीखें

ऐ खुदा यूँ न बदल रोज तारीखें,
                                    ये तो बता नई तारीख की वजह क्या हैं|
माना के लिखा तेरा ही होगा,
                                   पर ये तो बता तुने अब ये लिखा क्या हैं ||

Thursday, October 13, 2011

जाने ये क्या बेकरारी हैं...

जाने ये  क्या बेकरारी हैं,
                             जहनो दिल पे जो तारी हैं||
सारी की सारी परेशानियां,
                              मैंने दुनिया के हिस्से डाली हैं||
क्यों लगता हैं तुझे में तेरा हूँ नहीं,
                                 पढ़ ले इन आँखों को कहानी लिखी वही सारी हैं ||
इक बार मुढ़ के आ तो इधर,
                                 दुनिया मैंने तेरे क़दमो के नीचे बीछानी हैं||







कहते हैं इश्क बयां हो जाता हैं आँखों से

कहते हैं इश्क बयां हो जाता हैं आँखों से,
     हमने बहुत समझाया वो समझे ही नहीं||

अल्फाजों की वैसे ही बहुत कमी थी हमारे पास
     उन्ही से उन्हें मनाया वो माने ही नहीं ||

न जाने क्या आरज़ू हैं उनके दिल में,
       बहुत अंदाज़े लगाये पर सही कुछ लगे ही नहीं||


अपनाया गया सराहा गया

अपनाया गया सराहा गया,
                                       दिल में उनके सजाया गया|
कोई नहीं आया आखिर वक़्त पर,
                                                अंजाम वही के तन्हा ही दफनाया गया||

Wednesday, October 12, 2011

सच तो हैं सच उसे झूठ्लाऊँ कैसे

सच तो हैं सच उसे झूठ्लाऊँ कैसे,
  माना तेरे दर पर न आऊँ, पर न आना चाहूं कैसे||

इक उम्मीद है तो है इस दिल को,
      इसे हकीकत से रूबरू कराऊं तो, पर कराऊं कैसे||

कहते हो भूल जाओ बिना बतायें कैसे,
     आदत हो जिसकी हर सांस को, उसे भुलाऊँ तो पर भुलाऊँ कैसे||

जाने क्यों मजबूर हुआ हाथों की लकीरों से ऐसे,
       बदल देता किस्मत अपनी,पर तेरी मर्ज़ी को न मानू भी तो कैसे||

Wednesday, October 5, 2011

ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं

ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं, 
                                        मैं अब वो नहीं जो था कभी|

सच को ढोता ढोता था मैं थक गया,
                                                    तेरे ही बन्दों से लड़ता लड़ता थक गया|
रात काली घिर थी आयी क्या मैं करता,
                                                         रोशनी को रूह जलाई जो जलते जलते बुझ गयी|

ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं,
                                                   मैं अब वो नहीं जो था कभी|

यूँ ही अंधे रास्तों पे कब तक चलूँ,
                                                 राह कोई तो मुझे अब तू दिखा|
नहीं समझ पाया अब तलक के ये क्या हुआ,
                                                               पर मंजूर हैं सब अगर हैं तेरी यही रज़ा|
ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं,
                                                   मैं अब वो नहीं जो था कभी|

सुन जरा आखिरी ये मेरी इल्तजा,
                                                 कबूल कर ये मेरे दिल की दुआ|
तेरा हूँ तुझ में ही मिलना हैं मुझे,
                                               दर्द से इस अब कर दे मुझे बस तू जुदा||
                                                                                                                                                                                               

ऐसी क्या उम्मीद जो टूटती नहीं

ऐसी क्या उम्मीद जो टूटती नहीं,
                                        पर टूट जाता हैं आदमी||

कहने को तो कुछ नहीं पर वही सब कुछ हैं,
                                        कभी यों हालातों से घिर जाता हैं आदमी||

उलझन जरा सी हैं पर उलझी सी क्यों जिंदगी,
                                        जिंदगी जिंदगी सी सुलझाने में गुजर जाता हैं आदमी||

खुदा न था कोई तो पत्थर को खुदा बना लिया,
                                         इबादत करते करते खुद ही पत्थर हो जाता हैं आदमी||


Thursday, September 22, 2011

चल पड़े हैं कदम कही को...

चल पड़े हैं कदम कही को,
                                  न जाने किधर के अब हम हैं|
मंजिलों का इंतज़ार नहीं हमको,
                                   न जाने किस सफ़र पे अब हम हैं||

वो जो बैठा हैं अनजाना सा हमसे,
                                     देखते है उसे तो सोचते हैं किस के अब हम हैं|
रात भर सोचते रहे के क्या हुआ,
                                     इतने बुरे से क्यों खुद को लगते अब हम हैं ||

अपने साये में सिमट कर खो जाऊं कही,
                                         इतने बेगाने इस जहाँ से अब हम हैं|
न भी आये सुबह अब नयी तो क्या,
                                          जिंदगी से थोड़े ख़फा से अब हम हैं||





Tuesday, September 20, 2011

बस यूँ ही बस यूँ ही...

बेवजह ये प्यार क्यों हैं,
                                   इतना इंतज़ार क्यों हैं|
देखता हूँ में क्यों तुझको,
                                     बस यूँ ही बस यूँ ही ||

वो न जाने कौन हूँ मैं,
                               बेताब इतना ये दिल क्यों हैं|

सोचता हूँ रात दिन  उसको मैं,
                                     बस यूँ ही बस यूँ ही||

धडकनों में ये सोज़ क्यों हैं,
                                      बेज़ार दर्द से ये रूह क्यों हैं|
रुकी रुकी सी क्यों हैं ये ज़िन्दगी,
                                      बस यूँ ही बस यूँ ही||


Wednesday, August 24, 2011

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त,
   सोच रहा हूँ आज किस के साथ सोऊ मैं||

ताक़ रहा हूँ  न जाने कब से इस दरों दीवार को,
   सोच रहा हूँ उजाले या अँधेरे में सोऊ मैं||

जहनो दिल हैं न जाने किस कशमकश में,
   सोच रहा हूँ क्या भूल क्या याद कर सोऊ मैं||

वक़्त हैं के ठहरता नहीं एक पल को जरा,
   सोच रहा हूँ वक़्त को सोचूं  या वक़्त की सोच सोऊ मैं||


Tuesday, August 9, 2011

रात चांदनी ओढ़ के,दुल्हन सी बन के आयी हैं

रात चांदनी ओढ़ के,
                 दुल्हन सी बन के आयी हैं |
लगता हैं के आज,
                    तू याद कर कुछ मुस्करायी हैं||

दिन भर जो होती रही मुश्किलों से मुलाकात,
                     लगता हैं  रात वो सब कुछ भुलाने आयी हैं|
ये तारे सारे बिखरे मेरे सपने से हैं,
                     लगता हैं समेट उन्हें तू आसमां पे सजा लायी हैं||

महकी हैं हवा किसी खुशुबू से,
                लगता हैं तुझे छु के ये इठलाती आयी हैं|
 इतरा रहा हैं ये चाँद इतना क्यों ,
                लगता हैं तेरी नज़र इसने भी आज पायी हैं||

मैंने देखा हैं सितारों को जलते हुए...

मैंने देखा हैं सितारों को जलते हुए,
              जिंदगी के तारो  को इक इक कर टूटते हुए||

टूटती देखी हैं मैंने हज़ारों  ख़वाहिशे,
                   मैंने देखा हैं  बेआबरू प्यार को होते हुए||

 हारी हैं मैंने कई बाजियां जीतते हुए,
                   मैंने देखा हैं चरागों को उम्मीद के बुझते हुए||

कहते हो जिंदगी भर न रहेगा ग़म उसका,
                   मैंने देखा हैं ग़म को जिंदगी बनते हुए||

चाँद कितना चुपचाप निशब्द हैं आज

चाँद कितना चुपचाप निशब्द हैं आज,
                बादलों से घिरा कितना तन्हा हैं आज||

 यूँ तो बह रही हैं छु के मुझको मखमली सी हवा,
                पर न जाने क्यों थोड़ा दिल उदास हैं आज||

याद भी आते हो और चले भी जाते हो,
               आँखों में हल्की सी नमी उतर आयी हैं आज||

 कहे भी किस से और क्या कहे हम ,
                अपनों की भीड़ में बेगाने हो गए हैं आज||

Sunday, August 7, 2011

कभी देखा हैं तुमने...

कभी देखा हैं तुमने ,
                           सूरज को चांदनी में नहाते हुए|
वो तो जलता बस जलता हैं ,
                           रोशनी करने के लिए ||

कभी देखा हैं तुमने,
                         हवा को पेड़ों पे ठहरे हुए|
वो तो चलती हैं बस चलती हैं,
                          खुशुबू फेलाने के लिए||

कभी देखा हैं तुमने ,
                         नदीं को कहीं थमते हुए |
वो तो बहती हैं बस बहती हैं ,
                         प्यास सबकी बुझाने के लिए ||

कभी देखा हैं तुमने,
                          जमीं को आसमां से मिलते हुए |
वो जुदा हैं बस जुदा हैं,
                            इस दुनिया को कायम रखने के लिए ||

Sunday, July 31, 2011

कभी न कभी सोचेगा वो मेरी बात...

कभी न कभी सोचेगा वो मेरी बात,
                       जाने क्यों गुजरती नहीं काली रात||

जितना जिया तन्हा जिया नहीं मिला तेरा साथ,
                        और जो मिला उसकी न थी कभी प्यास||

कैसे कहें क्या हम कहें जो तुम चलों मेरे साथ ,
                        उम्मीद जरा बाकी सी हैं लड़ता हूँ रोज अपने ही साथ||

अच्छा हुआ या बुरा छोड़ो तुम ये बात,
                        गम है के अब वो मुस्कराता नहीं मुझे देखने के बाद||

Saturday, July 23, 2011

जिसने मुझसे वफ़ा न की ...

जिसने मुझसे वफ़ा न की,
                  वो किसी का क्या होगा |
जिसने दर्द न देखा इस दिल का,
                  वो दिलनशी किसी का क्या होगा||

आज भी फिर रहे हैं मजूनु शहर में,
                  पर कोई हम सा क्या होगा|
हमने वजूद मिटा लिया इश्क में,
                  फिर क्यों सोचते हो मेरा क्या होगा||



अभी हैं उम्र सब बाकी

अभी हैं उम्र सब बाकी,
                           अभी मुझे छोड़ जाओ ना ||

अभी सारी हसरतें हैं मेरी अधूरी,
                             अभी दामन छुड़ाओ ना ||

निगाहों से पूछता हूँ न जाने कितने सवाल,
                            कभी तो इक जवाब ले आओं ना ||

तुम्हारी आँखों में भर दिये हैं सारे ख्वाब मैंने,
                            अब ये ऑंखें हमसे चुराओं ना ||

Tuesday, July 5, 2011

आ छुपा ले हम दर्द के छाले

आ छुपा ले हम दर्द के छाले,
                           आसुओं से हम ये सारे घाव धो डाले||
इतने तन्हा हैं , अब और क्या होंगे,
                                  अपनी धडकनों को ही मीत बना डाले||

उन निगाहों से जो मिली बेरुखी,
                                        उस बेरुखी को हम सोज़ बना डाले|
कहते भी तो क्या हम,कुछ कह नहीं पाते,
                                          अपनी इस बेकसी को चल मय में डूबा डाले||











मरने पे आ गए हैं हम

मरने पे आ गए हैं हम,
                                जीने की आस पे|
क्यों बिछड़ गए हम,
                              मिलने की बात से||

जाने क्या कहने आये थे तुम,
                                           और हमने क्या जवाब दिया|
मुड़ के चल दिए तुम,
                                हमसे कुछ नाराज से ||

अब क्या कहे हाल क्या हैं,
                                      इस दिल का ऐ जनाब|
उखड़ी उखड़ी हैं साँसे,
                               फिर रहे हैं हम बदहवास से||












Thursday, June 9, 2011

कहते हैं लोग आजकल

कहते  हैं  लोग  आजकल  की  कुछ  क्यों  नहीं  करते  हो  तुम,
और  हम  हैं  इस  फ़िराक में के वो हमें आजमायें तो||

खुदा का शुक्र हैं की हम उसकी निगाहों में तो हैं,
वरना लोग सोच रहे हैं किसी तरह उसकी नज़र में आयें तो||

देखते हैं और कितना इम्तेहान लेते हैं वो,
हमें ख़ुशी इस में  ही हैं के वो जरा मुस्कराएँ तो||

क्या रखा हैं दुनिया को जीतने में "शफ़क",
मजा तो तब हैं जब वो  नज़रें मिलाएं तो||











Wednesday, May 25, 2011

मुझे पहचानते हो या नहीं तुम

मुझे पहचानते हो या नहीं तुम|
   मुझे इस कशमकश में न तुम डालो||


तेरी आँखों से ही पायी हैं जिंदगी मैंने,
  रहने दो आज चहरे पे न नकाब डालो||

न जाने क्या सोचते हो तुम-2|
 अपने ख्यालों से न मुझे बाँध डालो||


में दीवाना हो नहीं सकता,मेरी मजबूरियां बहुत हैं |
मुझे इतना न खीचों-२, के तुम मुझे तोड़ डालो||


पीनी मैंने छोड़ दी हैं,शहर भर को पता हैं |
मुझे महफ़िल में बुला के , "शफ़क" दोराहें पर न डालो||





Friday, May 13, 2011

इतनी ख़बर हैं के अब बेख़बर कोई नहीं

इतनी ख़बर हैं के अब बेख़बर कोई नहीं|
   जो हुआ आग़ाज तो अब कोई भी बेअसर नहीं||

निकल पड़ें हैं कुछ दीवाने छिनने आज़ादी को|
     सुना हैं गोलियों का मशालों पे कोई असर नहीं||

जिस ज़मी ने जीवन दिया, उस पे लहूँ बहा रहे|
    कितने मतवाले हैं वो,जिन्हें जिंदगी से कोई मोह नहीं||



दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले

दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले|
     किसी ने मेरी रूह को लूटा, किसी से जख्म हज़ार मिले||

हर आदमी से कोई न कोई नाखुश हैं यहाँ|
     हर कोई खुश हो जिससे, ऐसा इसां कहाँ मिले||

कल तक जो लहलहाता था,दरख्त पे उस आज एक पत्ता नहीं|
      ताउम्र हरा रह सके, ऐसा दरख्त कहाँ मिले||

हजारों ख्वाहिशे ले के फिरते हैं लोग यहाँ|
        हो न कोई खवाहिश जिसकी, वो बंदा ख़ुदा का कहाँ मिले||


दस्तक दे रहा हैं क्यों कोई मेरे दरवाजे पर

दस्तक दे रहा हैं क्यों कोई मेरे दरवाजे पर,
         कौन सी आफत ले आयी उसे इस मयखाने तक||

इस तूफां में भी उम्मीद है कुछ चराग रोशन रखने की,
    देखते हैं क्या बचता हैं तूफां के गुजर जाने पर||

सोचते हो क्यों नहीं बयाँ करते हम हाले दिल अपना|
        क्या करे मज़ा आ रहा हैं, जीने में इक उम्मीद पर||

हो गए हैं कुछ लोग दोस्त हमारे भी  "शफ़क" |
   देखते हैं कौन संभालता हैं हमें बुरा वक़्त आने पर||





Thursday, April 14, 2011

अपनी मौत से , अपनी क्या शिकायत होगी

अपनी मौत से , अपनी क्या शिकायत होगी|
बड़ी देर से आयी हो,अब तो जाने में दिक्कत होगी||

यूँ तो जी रहा हूँ रोज, मैं  हजारों सासें|
जी हैं कितनी, ये बताने में दिक्कत होगी||

आखिरी पलों में आयें हो, इक रस्म निभाने  के लिए|
नज़र तो आता हैं हमें, पर दिल को समझाने में दिक्कत होगी|

खुश रहो मेरे दोस्तों , चला नए सफर पे "शफ़क़"|
हाँ नयें रास्तों को समझने में , कुछ देर तो दिक्कत होगी||











Wednesday, March 9, 2011

मेरा दर्द इस काली सहायी में सिमट आये तो

मेरा दर्द इस काली सहायी में सिमट आये तो,
  जिंदगी भूले से सही कभी मुस्कराए तो||

चाँद तारों को देखता हूँ मैं रोज तन्हा,
कभी वो मुझको अपनी महफ़िल में बुलाये तो||

कई बार अपनी बेकसी की शिकायत करी उनसे,
उन्हें मेरी आँखों की अर्ज समझ आये तो||

वो जो हर रोज मुस्करा के निगाहें हटा लेते हैं,
मेरी बेखुदी का इक पल उन्हें नज़र आये तो||




Friday, January 14, 2011

मैं ही नहीं अभिमन्यु

मैं ही नहीं अभिमन्यु,
                            जो घिरा हो इस व्यूह में|
मेरे जैसे न जाने कितने,
                                भटक रहे इस व्यूह में||

प्रारंभ भी और अंत भी,
                             न जाने छिपा हैं किस छोर में|
जहा भी देखता हूँ बस स्वार्थ ही स्वार्थ हैं,
                            मर रहा हूँ निस्वार्थ ही न जाने किस मोह में||

हर तरफ देखता हूँ में क्या,
                           अपने ही तीर साधे हैं|
जहर बूझे भले न हो,
                          पर खून के प्यासे तो हैं||

समय अनिश्चित सही,
                          मृत्यु मेरी निश्चित ही हैं|
अनिश्चित युद्ध में,
                     विजय किसी की निश्चित तो हैं||

सत्य और असत्य का प्रशन,
                                    इस छण नहीं|
बचा न सका कोई प्रहार,
                                 मृत्यु ही परिणाम हैं||

कालजयी बन न सका,
                            अकाल मुत्यु समक्ष हैं |
व्यर्थ हैं किसी को दोष देना,
                                     ज्ञान हो अपूर्ण तो जन्मता अक्षम हैं||