मैं तेरी खामोशियों को चुनता हूँ
फिर नए ख़वाब कुछ बुनता हूँ मैं
देखता हूँ जब जब तेरी आँखों में बेरुखी
तब तब अंजाम को अपने फिर से लिखता हूँ मैं
खीचता हूँ कागज पे लकीरें
तो हर बार कुछ खालीपन भरता हूँ मैं
जब देखता हूँ गौर से क्या भरा
तो तुझको ही लिखा पाता हूँ मैं
हूँ भी और शायद हूँ भी नहीं
बस इतना हूँ के कुछ नहीं तेरा हूँ मैं
फिर न जाने क्यों कभी कभी
खवाबों में देख तुझे जिंदगी जी लेता हूँ मैं
फिर नए ख़वाब कुछ बुनता हूँ मैं
देखता हूँ जब जब तेरी आँखों में बेरुखी
तब तब अंजाम को अपने फिर से लिखता हूँ मैं
खीचता हूँ कागज पे लकीरें
तो हर बार कुछ खालीपन भरता हूँ मैं
जब देखता हूँ गौर से क्या भरा
तो तुझको ही लिखा पाता हूँ मैं
हूँ भी और शायद हूँ भी नहीं
बस इतना हूँ के कुछ नहीं तेरा हूँ मैं
फिर न जाने क्यों कभी कभी
खवाबों में देख तुझे जिंदगी जी लेता हूँ मैं
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