Sunday, April 15, 2012

I'm Sorry!!!

May be I'm doing it all wrong again
May be you'll hate me even more after this ends
May be you'll never ever understand Why?
But let me say one more time
I'm Sorry ..believe me I'm Sorry 

I know it is too late for you to even count
I don't know why? I failed every time i tried
To say what i felt each second which went by
But let me say one more time
I'm Sorry ..believe me I'm Sorry

I'll understand if you'll choose not to listen
I'll give way when you'll think it is still not even
I'll take it even if you find yourself later a bit unreasonable
But let me say one more time
I'm Sorry ..believe me I'm Sorry

I know sometimes it is hard to forgive
I know sometimes it is not easy to unlearn the pain
I know when you'll say it was just not right  
But let me say one more time
I'm Sorry ..believe me I'm Sorry

You may have already forgotten what we had
May be for you it was not the same as i had
I  think that will make things look a little more bad 
But let me say one more time
I'm Sorry ..believe me I'm Sorry 

 

Friday, April 13, 2012

सच सच हैं मगर हमें क्यों यकीं नहीं होता

सच सच हैं मगर हमें क्यों यकीं नहीं होता
इतना कड़वा क्यों हैं के गले के नीचे नहीं होता

तेरी यादें हैं ऐसी के मैं तन्हा हो के नहीं होता
जाऊ ऐसे भी कैसे हौसला तेरे बिन  नहीं होता


माना के कुछ भी नहीं हैं पर सोचता हूँ क्यों नहीं होता
ढूँढता हूँ जिस पल को वो पल कभी क्यों नहीं होता

हर रात इंतज़ार मैं हूँ पर वो सवेरा नहीं होता
जाने कहाँ जाऊँगा पर सफ़र क्यों शुरू नहीं होता




तुझे मिल आये हैं आज भी

तुझे मिल आये हैं आज भी 
दिल जला लाये हैं आज भी 

रहबर तुझसे बात की देर तक 
पर दिले जस्बात छुपा लाये हैं आज भी 

इंतज़ार मिटा आये कई दिनों का 
पर हासिल कल का इंतज़ार लाये हैं आज भी 

बता आये हाले दुनिया तुमको 
पर दर्दे दिल छुपा लाये हैं आज भी 

दीदे यार से मुन्नवर कर ली आँखे 
पर होशे दिल गुमा लाये हैं आज भी

Friday, April 6, 2012

ये कोशिश हैं

मेरी कागज के फूलों में खुशूबू तलाशने की ये कोशिश हैं
तुझे भूल जाने  की इस  नादां दिल की ये कोशिश हैं


तन्हा हूँ तन्हाई को तनहाइयों से मिटाने की ये कोशिश हैं
मैं सच हूँ मेरी सच को भुलाने की ये कोशिश हैं

मेरी ये मुस्कराहटें तेरी मुस्कराहटें भुलाने की ये कोशिश हैं
जाना चाहूं न कहीं पर ये सफ़र चाहते मिटाने की ये कोशिश हैं

लिखता हूँ  जाने क्या मगर दर्द को लब्सों में उलझाने की ये कोशिश हैं
क्यों हैरां हो मेरी खमोशी पर अब खामोश हो गुजर जाने की ये कोशिश हैं 
  

Thursday, April 5, 2012

you my friend must believe in you

when success eludes you
when misfortune preludes you
when your qualms cloud you 
you my friend must believe in you 


when what you not desire is you
when world exemplify a failed you 
when they always remember the imperfect you
you my friend must believe in you

when your words turn against you
when your own begin to leave you
when you are faced with ugly you 
you my friend must believe in you

when you've nothing n everything is you
when nobody is ready to bet on you
when every breath counts n your only chance is you
you my friend must believe in you

Tuesday, April 3, 2012

यूँ ही

निगाहें नूर इतना , के इस दिल में रोशनाई हैं
इन आँखों की ही चाहत हैं , के मरने पे बन आयी हैं ।।

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सुनते आये हैं शहर भर से चर्चे तेरे
मुझे हुस्न की एक झलक दिखाने में तेरा क्या जाता था

हर निगाह तेरी कातिल सा असर रखती हैं
मुझे भी यह दिखाने में तेरा क्या जाता था   

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हैं मेरे ख्यालात पे काबिज़ तू इस कदर
भुलाने पे याद आती हैं खुदा की तरह

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जिसको मैंने ख़ुशी समझी वो गम निकला
हाय ! कितना बेरहम तेरा रहम निकला

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हर ख़ुशी अब हम तक आते आते घबराती हैं
शोक़े गम हैं मुझे इस कदर यारों

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तेरा नाम लेने से दिल को क्या सकूं
वो तो इक चर्चा हैं क़यामत का

  

क्या दवा करे कोई

इस गमें दिल की क्या दवा करे कोई
जी के क्या करना हैं क्यों जीने की दुआ करे कोई

दर्खुवार हैं हम जब सितमे वक़्त
क्यों न राहों में मेरी कांटें बोया करे कोई

तेरे दर पर लगा हैं खुशियों का मेला संगदिल
क्यों मेरी जख्मों की पुरशिश को आये कोई  

कल तलक तो हमने भी पहरेदार लगाए थे
पर अब क्या हैं मेरे पास क्या छीनने आये कोई
 

चलते जाना हैं ...

काली रात अंधे रस्ते
फिर भी चलते जाना हैं
दूर सही मंजिल तेरी
फिर भी उसे तो पाना हैं

व्यर्थ सही हर जतन तेरा
पर खाली समय क्यों गवाना हैं
क्यों सोचे तू हैं रातें काली
अरे सवेरा कभी तो आना हैं


पर सोच ये न बैठ चुपचाप
तेरा धर्म कर्म करते जाना हैं
ले विश्वास अटूट शिला सा
तुझको आगे बढते जाना हैं 


क्या हुआ जो चुभते हैं कांटे
जलती हैं  ये साँसे
इसको समझ इक और वसंत
तुझे सिर्फ चलते जाना हैं   


  

Sunday, April 1, 2012

सच को भुलाने...

सच को भुलाने मैं बेठा यहाँ पे
यार मेरे अब मुझको पिला दे
इतनी पिला के मेरे होश गवाँ दे
जिंदगी हम ये बेहोश बिता दे


याद न आये जहाँ  कोई हमको
ऐसी  हमें कोई जगह बता दे
चाहूं मैं अब वो हमको भुला दे 
 तू न मेरा अब उसे कोई पता दे

कैसे मैं सहता वो मीलों सी दूरी
रह के पास अजनबियों सी मजबूरी
पल पल मैं मरता जी न पाता
कभी वक़्त मिले तो उसको ये समझा दे

माना मैंने सही को थोड़ा गलत सा किया
पर क्या कोई ओर रस्ता था जरा मुझको बता दे
यूँ न देख मुझे मुजरिमों की तरह
सही मैंने किया बस ये मुझको बता दे