Wednesday, December 14, 2011

मुझ से ही न जाने क्यों

मुझ से ही न जाने क्यों, पूछ रही जिंदगी इतने सवाल क्यों|

रंगी ख्वाब थे जो कल के, लग रहे आज बेरंग दरों दीवार क्यों|

कल तलक तो मैं सबका था, आज सबह से बदले हैं सबके मिजाज़ क्यों|

कहने को क्या हैं कह तो हम कुछ भी दे मगर, आज ही क्यों लियें बेठे हो वो इक बात क्यों |

बेदम हो के रह गए अनजानों की तरह जब निकले तुम, पूछ भी न पाए के लगते हो इतने परेशान क्यों |

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