आ छुपा ले हम दर्द के छाले,
आसुओं से हम ये सारे घाव धो डाले||
इतने तन्हा हैं , अब और क्या होंगे,
अपनी धडकनों को ही मीत बना डाले||
उन निगाहों से जो मिली बेरुखी,
उन निगाहों से जो मिली बेरुखी,
उस बेरुखी को हम सोज़ बना डाले|
कहते भी तो क्या हम,कुछ कह नहीं पाते,
अपनी इस बेकसी को चल मय में डूबा डाले||
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