सच तो हैं सच उसे झूठ्लाऊँ कैसे,
माना तेरे दर पर न आऊँ, पर न आना चाहूं कैसे||
इक उम्मीद है तो है इस दिल को,
इसे हकीकत से रूबरू कराऊं तो, पर कराऊं कैसे||
कहते हो भूल जाओ बिना बतायें कैसे,
आदत हो जिसकी हर सांस को, उसे भुलाऊँ तो पर भुलाऊँ कैसे||
जाने क्यों मजबूर हुआ हाथों की लकीरों से ऐसे,
बदल देता किस्मत अपनी,पर तेरी मर्ज़ी को न मानू भी तो कैसे||
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