Tuesday, June 4, 2013

अंधेरों से आगे उजालों का गाँव हैं

अंधेरों से आगे उजालों का गाँव हैं

उमीदों से बनी पगडंडियाँ उस की
और इरादों की नेक उन पे छाव हैं
लहलहाते है वहां खेत मेहनत के
सीचती जिन्हें नदी प्यार की सुबह शाम हैं

अंधेरों से आगे उजालों का गाँव हैं


हर कोई वहाँ एक से बढकर एक है
पर फिर भी न वहाँ कोई सब के ऊपर एक हैं
हर की नज़र में वहाँ हर कोई खास हैं
सुनते है वो रखते अपना आइना हर पल साथ हैं

अंधेरों से आगे उजालों का गाँव हैं

न मस्जिद की अज़ाने , न मंदिरों का अधूरा ज्ञान हैं
जो भी हैं सब ने सीखा  जिंदगी इक साथ हैं
स्कूल जिंदगी के वहाँ खुले हर पीपल की छावं हैं
बच्चे सीखें बुजुर्गों से जिनके तुर्जूबो  की मिसाल हैं

अंधेरों से आगे उजालों का गाँव हैं

बावरें ... बावरें ... बावरें

चाहें जैसा भी तू भेष धर ले
उसके मन में न समा पायें तू

चाहे कितना भी तू सूरज से लड़ ले
उसकी परछाई न बन पायें तू

बावरें ... बावरें ... बावरें


चाहें कितना भी तू इंतज़ार कर ले
उसका वक़्त न बन पायेगा रे तू

चाहें कितना भी तू अब लुटा जिंदगी
उसकी मुस्कराहटें न बन पायेगा तू

बावरें ... बावरें ... बावरें