Monday, October 15, 2012

ऐ दिल बता...

ये राहें मुझे हाँ रोके हैं
मंजिलें मुझे हाँ टोके हैं
पर क्या पता मुझे जाना हैं कहाँ
ऐ दिल बता मंजिले मेरी हैं कहाँ

ये नज़रों के सारे  धोखे हैं
बदलते जो मौसमों से ये रिशते हैं
कसमे हाँ वादें वो नातें ,निभाएं न कोई यहाँ
ऐ दिल बता तो किसको कहूँ अपना यहाँ

ये प्यार जिसे हाँ कहते हैं
बाज़ारों में होतें जैसे वो ये सोदें हैं
जो बिकता  नहीं डिगता नहीं ,रहता हैं अकेला यहाँ
ऐ दिल बता कितना बिकूं क्यों बिकूं मैं यहाँ

ये शोर जहां में बड़ा गहरा हैं
हर निगाहं पे रोशिनियों का पहरा हैं
तो कैसे कोई सुन देख के पहचाने दिल को यहाँ
ऐ दिल बता कैसे जिएगा तू अब यहाँ 

Sunday, October 14, 2012

हाय हाय ये बेचारें दिल ...

पेड़ों की टहनियों पे लटके से ये दिल
कोई लटका हैं कई बरस से कोई दो चार दिन से
और माशुकाये AC में सोये without any bill
हाय हाय ये बेचारें दिल ...

कहा ये जाएँ किसकों सुनाएँ
यार सारे बोर हो गए हैं
सुन सुन के  इनकी अधूरी फ़िल्म
और माशुकाये  mall में घूमे without any frill
हाय हाय ये बेचारें दिल ...

पंडतों को पतरी ये दीखायें
उम्मीद से बड़ी प्रभु को नारियल भी  चड़ाये
रोज नए कपड़े पहन के जाये
साला हर कोई देख ले इनकों
और मशुकाये यूँ ही निकल जाये, रह जाएँ ये without any thrill
हाय हाय ये बेचारें दिल ...





Thursday, October 11, 2012

सब यूँ ही सही क्यों हैं

गर सब सही तो सब यूँ ही सही क्यों हैं
गर सब हैं गलत तो सब ही गलत क्यों हैं

मेरी हाथों की लकीरों में जो हैं वो क्यों हैं
और जो हैं नहीं तो वो नहीं क्यों हैं

हैं सवाल ही सवाल पर इतने क्यों हैं
आर जवाब नहीं इक भी तो ऐसा भी क्यों हैं  

खाली खाली सुने ये सब ये लम्हे क्यों हैं
गर इंतज़ार हैं अब भी तो वो भी क्यों हैं

माना के बेवजह हैं पर ये वजह बेवजह क्यों हैं
सोचता हूँ तुझे पर आखिर सोचता दिल क्यों हैं

लौट कर आ गया फिर वही पर आया क्यों हैं
ख़त्म नहीं होता ये सफर पर ये सफर क्यों हैं 

चल इंतज़ार ही ये मिटा जाये

रोका न जब उसने तो हम खुद ही चले आये  
भुलाते क्या हूँ तुझको हम खुद ही भुला आये

आँखे करती रही इंतज़ार हाँ इंतज़ार
हुआ जब न खत्म तो इंतज़ार को ही सफ़र बना लाये


सोचे तो क्या पाया हैं सोचे तो क्या खोया हैं
खुद को ही बस खुद से ही जुदा हम कर आये


न जाने क्या लिखी थी तक़दीर में हमारी जिंदगी
पर सकूं ये के तुझे तेरी जिंदगी दे आये


वजूद का मेरे तू अब भरम भी रखें तो क्या रखें
जो होने का था गुमां मुझको वो गुमां कही दफना लाये


चल चले कहीं दूर जहां हमको भी हम न मिले
चल सारे ख्वाब इस रात हम जला आये

चल अब चले इस रात को हम शफ़क
सबह वो शायद न आये चल इंतज़ार ही ये मिटा जाये