Wednesday, December 14, 2011

चल दर्द का कारोबार करें

चल दर्द का कारोबार करें, लिखूं मैं कुछ दर्द भरा|
तू उसको कोई साज़ दे , उम्मीद की नयी आवाज़ दे|


चल सबाब का कुछ काम करें, मये गम को इक नया जाम दे|
हैं कितने तन्हा यहाँ कितने लोग, उनकी तनहाइयों को इक रंगी शाम दे|

चल चले इस शोरो-गुल से दूर, रोशनियों भरे इस जहां से दूर|
अंधेरों में उजालों की सोचे, इन रातों को नया आफ़ताब दे|

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