दस्तक दे रहा हैं क्यों कोई मेरे दरवाजे पर,
कौन सी आफत ले आयी उसे इस मयखाने तक||
इस तूफां में भी उम्मीद है कुछ चराग रोशन रखने की,
देखते हैं क्या बचता हैं तूफां के गुजर जाने पर||
सोचते हो क्यों नहीं बयाँ करते हम हाले दिल अपना|
क्या करे मज़ा आ रहा हैं, जीने में इक उम्मीद पर||
हो गए हैं कुछ लोग दोस्त हमारे भी "शफ़क" |
देखते हैं कौन संभालता हैं हमें बुरा वक़्त आने पर||
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