अपनी उम्मीदों के बोझ से टूट गया,
वो शज़र जो चला था आसमां छूने||
जला लिया जह्नो दिल उसने,
वो जगमगाने चला था दुनिया खवाबों से अपने||
गुजर गया अनकही सी नज़्म होठों पे लियें,
वो तन्हाई में सज़ाता था घर पे महिफ़िलें अपने||
कौन कहता हैं तेरे जाने से कमी होगी कुछ दुनिया में,
वो आज से ही निकाले बैठे हैं कल के काम अपने||
Nihayat sundar rachana!
ReplyDeletethanks
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