Friday, May 13, 2011

दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले

दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले|
     किसी ने मेरी रूह को लूटा, किसी से जख्म हज़ार मिले||

हर आदमी से कोई न कोई नाखुश हैं यहाँ|
     हर कोई खुश हो जिससे, ऐसा इसां कहाँ मिले||

कल तक जो लहलहाता था,दरख्त पे उस आज एक पत्ता नहीं|
      ताउम्र हरा रह सके, ऐसा दरख्त कहाँ मिले||

हजारों ख्वाहिशे ले के फिरते हैं लोग यहाँ|
        हो न कोई खवाहिश जिसकी, वो बंदा ख़ुदा का कहाँ मिले||


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