दोस्त बन बन के यहाँ मुझे कातिल हज़ार मिले|
किसी ने मेरी रूह को लूटा, किसी से जख्म हज़ार मिले||
हर आदमी से कोई न कोई नाखुश हैं यहाँ|
हर कोई खुश हो जिससे, ऐसा इसां कहाँ मिले||
कल तक जो लहलहाता था,दरख्त पे उस आज एक पत्ता नहीं|
ताउम्र हरा रह सके, ऐसा दरख्त कहाँ मिले||
हजारों ख्वाहिशे ले के फिरते हैं लोग यहाँ|
हो न कोई खवाहिश जिसकी, वो बंदा ख़ुदा का कहाँ मिले||
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