इतनी ख़बर हैं के अब बेख़बर कोई नहीं|
जो हुआ आग़ाज तो अब कोई भी बेअसर नहीं||
निकल पड़ें हैं कुछ दीवाने छिनने आज़ादी को|
सुना हैं गोलियों का मशालों पे कोई असर नहीं||
जिस ज़मी ने जीवन दिया, उस पे लहूँ बहा रहे|
कितने मतवाले हैं वो,जिन्हें जिंदगी से कोई मोह नहीं||
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