Monday, December 5, 2011

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

मन करता हैं तेरा नाम लिखूं उसपे , अपनी जिंदगी की तरह

फिर रोक लेता हूँ खुद को कुछ सोच हमेशा

याद आ ही जाती हैं हकीकत,  मुझे हर सबह की तरह

मुस्कराता हूँ देता हूँ हल्की चोट सर को अपने हाथों से

मुड़ता हूँ कुछ कदम हट के पीछे , चलता हूँ फिर करने दुनिया को सलाम हमेशा की तरह

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