Wednesday, August 24, 2011

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त,
   सोच रहा हूँ आज किस के साथ सोऊ मैं||

ताक़ रहा हूँ  न जाने कब से इस दरों दीवार को,
   सोच रहा हूँ उजाले या अँधेरे में सोऊ मैं||

जहनो दिल हैं न जाने किस कशमकश में,
   सोच रहा हूँ क्या भूल क्या याद कर सोऊ मैं||

वक़्त हैं के ठहरता नहीं एक पल को जरा,
   सोच रहा हूँ वक़्त को सोचूं  या वक़्त की सोच सोऊ मैं||


1 comment:

  1. har baar ki tarah akhri do lines to bas kahar dha gayi, waise aag to pahli do lines ne hi laga di thi....

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