मुझे दर्द का कोई साज़ न दे,
फिर से कोई आवाज़ न दे|
मैं गिरा हूँ तो गिरा सही,
मुझे बढ के कोई हाथ न दे||
तूफ़ानों से मैं लड़ रहा,
अपनी ही जिद पे अड़ रहा|
हो जाऊँ फनाह तो फनाह सही,
जिंदगी अब कोई झूठी आस न दे||
आद्त हैं अंधेरों की मुझे,
कोई अब चराग़ न दे|
खुदा रख तू खुदाई अपने लिये,
अपने रहम का मुझ पे इल्जाम न दे||
फिर से कोई आवाज़ न दे|
मैं गिरा हूँ तो गिरा सही,
मुझे बढ के कोई हाथ न दे||
तूफ़ानों से मैं लड़ रहा,
अपनी ही जिद पे अड़ रहा|
हो जाऊँ फनाह तो फनाह सही,
जिंदगी अब कोई झूठी आस न दे||
आद्त हैं अंधेरों की मुझे,
कोई अब चराग़ न दे|
खुदा रख तू खुदाई अपने लिये,
अपने रहम का मुझ पे इल्जाम न दे||
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