ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं,
मैं अब वो नहीं जो था कभी|
सच को ढोता ढोता था मैं थक गया,
तेरे ही बन्दों से लड़ता लड़ता थक गया|
रात काली घिर थी आयी क्या मैं करता,
रोशनी को रूह जलाई जो जलते जलते बुझ गयी|
ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं,
मैं अब वो नहीं जो था कभी|
यूँ ही अंधे रास्तों पे कब तक चलूँ,
राह कोई तो मुझे अब तू दिखा|
नहीं समझ पाया अब तलक के ये क्या हुआ,
पर मंजूर हैं सब अगर हैं तेरी यही रज़ा|
पर मंजूर हैं सब अगर हैं तेरी यही रज़ा|
ऐ खुदा मुझे माफ़ करना मैं वो नहीं,
मैं अब वो नहीं जो था कभी|
सुन जरा आखिरी ये मेरी इल्तजा,
कबूल कर ये मेरे दिल की दुआ|
तेरा हूँ तुझ में ही मिलना हैं मुझे,
दर्द से इस अब कर दे मुझे बस तू जुदा||
No comments:
Post a Comment