रात चांदनी ओढ़ के,
दुल्हन सी बन के आयी हैं |
लगता हैं के आज,
तू याद कर कुछ मुस्करायी हैं||
दिन भर जो होती रही मुश्किलों से मुलाकात,
लगता हैं रात वो सब कुछ भुलाने आयी हैं|
ये तारे सारे बिखरे मेरे सपने से हैं,
लगता हैं समेट उन्हें तू आसमां पे सजा लायी हैं||
महकी हैं हवा किसी खुशुबू से,
लगता हैं तुझे छु के ये इठलाती आयी हैं|
इतरा रहा हैं ये चाँद इतना क्यों ,
लगता हैं तेरी नज़र इसने भी आज पायी हैं||
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