चल पड़े हैं कदम कही को,
न जाने किधर के अब हम हैं|
मंजिलों का इंतज़ार नहीं हमको,
न जाने किस सफ़र पे अब हम हैं||
वो जो बैठा हैं अनजाना सा हमसे,
देखते है उसे तो सोचते हैं किस के अब हम हैं|
रात भर सोचते रहे के क्या हुआ,
इतने बुरे से क्यों खुद को लगते अब हम हैं ||
अपने साये में सिमट कर खो जाऊं कही,
इतने बेगाने इस जहाँ से अब हम हैं|
न भी आये सुबह अब नयी तो क्या,
जिंदगी से थोड़े ख़फा से अब हम हैं||
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