ऐसी क्या उम्मीद जो टूटती नहीं,
पर टूट जाता हैं आदमी||
कहने को तो कुछ नहीं पर वही सब कुछ हैं,
कभी यों हालातों से घिर जाता हैं आदमी||
उलझन जरा सी हैं पर उलझी सी क्यों जिंदगी,
जिंदगी जिंदगी सी सुलझाने में गुजर जाता हैं आदमी||
खुदा न था कोई तो पत्थर को खुदा बना लिया,
इबादत करते करते खुद ही पत्थर हो जाता हैं आदमी||
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