मुझे न देखते हो तो,
देखते हो उस आइने को क्यों|
इतने भी जाहिल हम नहीं,
पास आतें घबरातें हो क्यों||
मुक्कदर की बात हैं,
वरना गरीब पैदा कोई हूए ही क्यों|
ठिकाना हो तो न सोयें सड़क पर,
तुम्हारी आँखों का नासूर बने ही क्यों||
घर में शराब और नहीं,
वरना एक जाम पर हम रुके हैं क्यों|
आजादी का दिन हैं पर पीने की नहीं,
ऐसी आजादी से हम उब न जायें क्यों ||
शुक्र कर जन्नत का लालच तो हैं,
वरना कोई तेरे दर पे आयें क्यों||
"शफक" कितनी मशरूफ हैं दुनियां,
किसी को खुदा यूँ ही याद आयें क्यों ||
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने ........
ReplyDeleteपढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पर की जाये नदी ?