Sunday, September 26, 2010

मुझे न देखते हो तो

मुझे न देखते हो तो,
          देखते हो उस आइने को क्यों|
इतने भी जाहिल हम नहीं,
        पास आतें घबरातें हो क्यों||

मुक्कदर की बात हैं,
    वरना गरीब पैदा कोई हूए ही क्यों|
ठिकाना हो तो न सोयें सड़क पर,
    तुम्हारी आँखों का नासूर बने ही क्यों||

घर में शराब और नहीं,
    वरना एक जाम पर हम रुके हैं क्यों|
आजादी का दिन हैं पर पीने की नहीं,
   ऐसी आजादी से हम उब न जायें क्यों ||

शुक्र कर जन्नत का लालच तो हैं,
    वरना कोई तेरे दर पे आयें क्यों||
"शफक" कितनी मशरूफ हैं दुनियां,
      किसी को खुदा यूँ ही याद आयें क्यों ||

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने ........

    पढ़िए और मुस्कुराइए :-
    आप ही बताये कैसे पर की जाये नदी ?

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