इतनी नफ़रत क्यों हैं इस फिज़ा में
क्यों हैं वो खफ़ा तेरे से हर निगाहं में
इतना सा भी भरम तेरा न रख पाता हैं वो
हैं अजनबियों सा पर खफा हैं कुछ दोस्तों की तरह से
गलत ही हो शायद दिल तू अपनी हर वजह में
सच उसका हर भरम हो अपनी जगह पे
तोड़कर तेरा दिल बार बार क्या चाहता हैं वो
शायद कुछ सकूं पाता होगा तेरी दर्द से भरी आह पे
खुद से क्यों गिरा देता हैं बार बार तुझे अपनी ही निगाहं में
शायद तेरा होना उसे मंज़ूर नहीं किसी भी वज़ह से
क्यों हैं वो खफ़ा तेरे से हर निगाहं में
इतना सा भी भरम तेरा न रख पाता हैं वो
हैं अजनबियों सा पर खफा हैं कुछ दोस्तों की तरह से
गलत ही हो शायद दिल तू अपनी हर वजह में
सच उसका हर भरम हो अपनी जगह पे
तोड़कर तेरा दिल बार बार क्या चाहता हैं वो
शायद कुछ सकूं पाता होगा तेरी दर्द से भरी आह पे
खुद से क्यों गिरा देता हैं बार बार तुझे अपनी ही निगाहं में
शायद तेरा होना उसे मंज़ूर नहीं किसी भी वज़ह से
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