Saturday, March 17, 2012

जाना पहचाना सा फिर भी अनजाना सा

जाना पहचाना सा फिर भी अनजाना सा
भुला भुला मैं कुछ खुद से बेगाना सा

जाने क्यों आँखे देखती हैं ये मेरी
सपना अधूरा वही जाना पहचाना सा

जाने अब मैं हूँ कहाँ, जाने अब मैं जाऊं कहाँ
जाने अब मैं भूल जाऊं, कब कितना खुद को यहाँ

जाना पहचाना सा फिर भी अनजाना सा
भुला भुला मैं कुछ खुद से बेगाना सा

अब भी जब तू हैं मिले, जाने क्यों सासें से रुक रुक के चलें
हैं कुछ भी नहीं दरमयां, फिर भी एक  रिश्ता सा हैं चलें 

कौन जाने कहाँ ,कितना भटका हूँ मैं यहाँ
तेरी तलाश में, जी के भी जीया कब कहाँ

जाना पहचाना सा फिर भी अनजाना सा
भुला भुला मैं कुछ खुद से बेगाना सा

अब जब जाने लगे हो, तुम मुझे छोड़ के
जी करता हैं रोक लूं, मैं तुम्हे सारे बंधन तोड़ के

हैं ये कैसे उदासी, हैं कैसी बेचैनी
दिल करता हैं , अब मैं बता भी दूं तुम्हें कभी दिल खोल के

जाना पहचाना सा फिर भी अनजाना सा
भुला भुला मैं कुछ खुद से बेगाना सा
 













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