Sunday, June 17, 2012

मुझे इक पल खुदाई का तो दे

दरवाज़ा खोल तो दूँ  इस घर का
पर इंतज़ार मैं हूँ वो दस्तक तो दे

हर बार नजर फेर लेता हैं मिल जाये अगर 
कभी तो नजर भर मेरे होने का ऐहसास तो दे

न जाने कर चूका हूँ मैं कितने सवाल 
अब सोचता हूँ के वो कोई जवाब तो दे

कौन जाने कहाँ तक हैं मेरी बेफाई के चर्चे
मुझे मुक्तसर ही सहीं सफाई का मौका तो दे

वो कहे तो इक ही पल मैं हो जाने दूँ सब फनाह
पर मेरा खुदा वो मुझे इक पल खुदाई का तो दे








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