Saturday, June 16, 2012

इक सपना देखता हूँ...




इक सपना देखता हूँ
मैं चल रहा हूँ बादलों के ऊपर

गम की बारिशों से परे
मैं जी रहा हूँ बिन हवा के ऊपर

सितारे देख के मुस्करा रहे हैं
और चाँद रश्क कर रहा हैं मुझ पर

सूरज लग रहा हैं कुछ बुझा बुझा सा
सोच रहा हूँ वो भी मुस्करा दे मुझ पर

बिजलियाँ कड़क रही हैं कभी कभी
जता सा रही हैं थोडा रौब मुझ पर

देखता हूँ वहाँ से अपनी जमीं को
नज़र आती हैं तेरे नीले सफ़ेद दामन की तरह कुछ

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