Sunday, April 1, 2012

सच को भुलाने...

सच को भुलाने मैं बेठा यहाँ पे
यार मेरे अब मुझको पिला दे
इतनी पिला के मेरे होश गवाँ दे
जिंदगी हम ये बेहोश बिता दे


याद न आये जहाँ  कोई हमको
ऐसी  हमें कोई जगह बता दे
चाहूं मैं अब वो हमको भुला दे 
 तू न मेरा अब उसे कोई पता दे

कैसे मैं सहता वो मीलों सी दूरी
रह के पास अजनबियों सी मजबूरी
पल पल मैं मरता जी न पाता
कभी वक़्त मिले तो उसको ये समझा दे

माना मैंने सही को थोड़ा गलत सा किया
पर क्या कोई ओर रस्ता था जरा मुझको बता दे
यूँ न देख मुझे मुजरिमों की तरह
सही मैंने किया बस ये मुझको बता दे

 











 




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