Friday, April 13, 2012

सच सच हैं मगर हमें क्यों यकीं नहीं होता

सच सच हैं मगर हमें क्यों यकीं नहीं होता
इतना कड़वा क्यों हैं के गले के नीचे नहीं होता

तेरी यादें हैं ऐसी के मैं तन्हा हो के नहीं होता
जाऊ ऐसे भी कैसे हौसला तेरे बिन  नहीं होता


माना के कुछ भी नहीं हैं पर सोचता हूँ क्यों नहीं होता
ढूँढता हूँ जिस पल को वो पल कभी क्यों नहीं होता

हर रात इंतज़ार मैं हूँ पर वो सवेरा नहीं होता
जाने कहाँ जाऊँगा पर सफ़र क्यों शुरू नहीं होता




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