Tuesday, April 3, 2012

यूँ ही

निगाहें नूर इतना , के इस दिल में रोशनाई हैं
इन आँखों की ही चाहत हैं , के मरने पे बन आयी हैं ।।

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सुनते आये हैं शहर भर से चर्चे तेरे
मुझे हुस्न की एक झलक दिखाने में तेरा क्या जाता था

हर निगाह तेरी कातिल सा असर रखती हैं
मुझे भी यह दिखाने में तेरा क्या जाता था   

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हैं मेरे ख्यालात पे काबिज़ तू इस कदर
भुलाने पे याद आती हैं खुदा की तरह

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जिसको मैंने ख़ुशी समझी वो गम निकला
हाय ! कितना बेरहम तेरा रहम निकला

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हर ख़ुशी अब हम तक आते आते घबराती हैं
शोक़े गम हैं मुझे इस कदर यारों

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तेरा नाम लेने से दिल को क्या सकूं
वो तो इक चर्चा हैं क़यामत का

  

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