Friday, January 20, 2012

परिंदों को उड़ना होगा

परिंदों को उड़ना होगा
आसमानों को छूना होगा

यूँ ही न बैठ थक हार के
ऐ मेरे हमसफ़र तुझे चलना होगा

तनहाइयाँ  सुकूं तो देंगी मगर
उस सुकून में कोई तेरे आसूं पोछने वाला न होगा
न रूक अब तुझे महफिलों का रुख करना ही होगा


भूल कर हर बात को उस रात को
उस शून्य को उस विराम को
तुझे सुबह के उजालों में नहाना ही होगा


क्या हुआ क्यों हुआ
किसने ने किया क्यों किया
क्या सही क्या गलत
क्या बचा क्या गया
भूल जा भूल जा

चल जा जिंदगी को गले से लगा
मुस्करा जीना सिखा खुद को फिर से

परिंदों को उड़ना होगा
ऐ मेरे हमसफ़र तुझे चलना ही होगा ....


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