Saturday, January 21, 2012

रात को तोड़कर सवेरा निकलेगा

रात को तोड़कर सवेरा निकलेगा
चाँद को छोड़कर आसमां सूरज से खेलेगा

सोच मत के कोई जिंदगी भर तेरे लिए
रात के अंधेरों में रोयेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी

पथरों को पूजने की आदत हो जहाँ
वहा इंसानों को कौन पूछेगा

चल चले इस जहां से कही दूर
जान ले के कोई भी न तुझे खोजेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी

काम का हैं किसी के तो हैं ठीक
नाकाम होगा तो क्या होगा कौन सोचेगा

इस दुनिया को मतलब हैं मतलब से
जब मतलब न होगा तो होगा वो जो तू अब न सोचेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी




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