Thursday, January 26, 2012

जब हद से कोई गुज़र गया...

जब हद से कोई गुज़र गया
जब दर्द भी दर्द से टूट गया
जब वक़्त भी सहमा सा थम गया
जब भीतर भीतर सब जल गया

तब भी न जाने क्यों रहा
मेरा खुदा चुपचाप -चुपचाप

जब सासें साथ न देने लगी
जब तन्हाई भी तन्हा लगने लगी
जब आँखों में आसूं भी न रहे
जब दुनिया ओझल होने लगी

तब भी न जाने क्यों रहा
मेरा खुदा चुपचाप -चुपचाप

जब अहसासों की कीमत भी न रही
जब ख़ुशी भी गम सी लगने लगी
जब सपने सारे बिखरने लगे
जब खुद से बेगाना मैं होने लगा

तब भी न जाने क्यों रहा
मेरा खुदा चुपचाप -चुपचाप
न जाने क्यों रहा खुदा
चुपचाप चुपचाप ....




न कुछ कह के...

न कुछ कह के सब कुछ कहने की
आदत तेरी आँखों ने छोड़ी नहीं

यूँ ही बस  बात बात पे जां
जान मेरी लेने की आदत तूने छोड़ी नहीं


कैसे फिर न मनाऊँ में तुझे
दिल ने मेरे याद करने की तुझे आदत छोड़ी नहीं


जाओ जहाँ भी जाते हो रूठ के तुम
जानता हूँ तूने लौट आने की आदत छोड़ी नहीं


क्यों नाराज सी हैं दुनिया मुझ से
परवानों ने भी तो शम्मा पे मरने की आदत छोड़ी नहीं



Saturday, January 21, 2012

खाली खाली लम्हों में रंग

खाली खाली लम्हों में रंग भरने को जी करता हैं
क्या करूँ हल पल तुझसे मिलने को जी करता हैं

जानता हूँ क्या हक़कीत क्या हैं ख्वाब
पर खवाबों में जीने को जी करता हैं

कौन छोड़ता हैं दुनिया के सारे कामों काज
पर देख के तुझे तुझे देखने को ही जी करता हैं

जाने कहाँ ले जाना चाहे हैं मुझे ये जिंदगी
क्या करूँ बस तेरे दर तक ही जाने को जी करता हैं

कैसे रोक ले अब मुझ को ये सारा जहान
तुझ पे होने को निसार मेरा जी करता हैं


तेरा इशक हैं खुदा की इबाद्दत

तेरा इशक हैं खुदा की इबाद्दत
मैं करूं खुदा की इबाद्दत तो बुरा क्या हैं

नशें में रहना खुदा के बुरा नहीं तो
मैं तेरे नशे में रहूँ जिंदगी भर तो बुरा क्या हैं


क्यों कहती हैं दुनिया के बेहतर हैं भूल जाऊं तुझे
याद करता हूँ गर में हर घड़ी खुदा को तो बुरा क्या हैं


चाँद रोशन रहे सूरज से दुनिया रोशन रहे
में तुझ से रोशन रहूँ मेरा दिल रोशन रहे तो बुरा क्या हैं

रहकर जब न रह पाया तेरे दिल में एक पल को
न रहकर गर याद आ जाऊं पल को तुझे तो बुरा क्या हैं

रात को तोड़कर सवेरा निकलेगा

रात को तोड़कर सवेरा निकलेगा
चाँद को छोड़कर आसमां सूरज से खेलेगा

सोच मत के कोई जिंदगी भर तेरे लिए
रात के अंधेरों में रोयेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी

पथरों को पूजने की आदत हो जहाँ
वहा इंसानों को कौन पूछेगा

चल चले इस जहां से कही दूर
जान ले के कोई भी न तुझे खोजेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी

काम का हैं किसी के तो हैं ठीक
नाकाम होगा तो क्या होगा कौन सोचेगा

इस दुनिया को मतलब हैं मतलब से
जब मतलब न होगा तो होगा वो जो तू अब न सोचेगा

क्या करे हैं यही जिंदगी क्या करे हैं यही जिंदगी




सात आसमां पार हैं कोई

सात आसमां पार हैं कोई
देखता हैं बस दूर से ही कोई

न जाने क्यों न जाने क्यों

दर्द से बेजार हैं मगर
मुस्कराता हैं फिर भी वो दिन भर

न जाने क्यों  न जाने क्यों

रात काली कितनी भी आये चाँद को वो भूल न पाये
दिन में भी देखता हैं आसमां की तरफ

न जाने क्यों न जाने क्यों

जानता हैं कितना भी वो चाहे होगा कुछ न किस दर भी वो सर झुकाए 
फिर भी हैं इन्तेजार में पल पल

न जाने क्यों न जाने क्यों


Friday, January 20, 2012

परिंदों को उड़ना होगा

परिंदों को उड़ना होगा
आसमानों को छूना होगा

यूँ ही न बैठ थक हार के
ऐ मेरे हमसफ़र तुझे चलना होगा

तनहाइयाँ  सुकूं तो देंगी मगर
उस सुकून में कोई तेरे आसूं पोछने वाला न होगा
न रूक अब तुझे महफिलों का रुख करना ही होगा


भूल कर हर बात को उस रात को
उस शून्य को उस विराम को
तुझे सुबह के उजालों में नहाना ही होगा


क्या हुआ क्यों हुआ
किसने ने किया क्यों किया
क्या सही क्या गलत
क्या बचा क्या गया
भूल जा भूल जा

चल जा जिंदगी को गले से लगा
मुस्करा जीना सिखा खुद को फिर से

परिंदों को उड़ना होगा
ऐ मेरे हमसफ़र तुझे चलना ही होगा ....


मेरा खुदा करे

मेरा खुदा करे के दिल करे के वो करे कुछ यूँ

के मेरे दर्द की कभी कोई दवा न मिले


मुझको वो प्यारा हैं कुछ इस कदर

में चाहूं के दर्द उसका ही मुझे फनाह करे


रोकूँ कभी जो में कुछ कह के उसे

तो भी खुदा वो मुझे अनसुना सा करे


समझ भी ले गर वो मुझको कभी

गलत ही समझे कुछ वक़्त खेल ऐसा ही करे


खुदा करे हाँ करे खुदा खुदा करे करे

हम जले हम जले रोशन हो इतने के

सूरज भी उजाला फीखा सा करे 


चल चले अब यार चले देखें न देंखे न
कभी भी अब मुड़ के उसको
कहीं न उसे कभी कुछ बुरा सा लगे


Tuesday, January 3, 2012

ऐसी भी क्या हैं ये जिंदगी

अपने गम की खुद से दवा करे
रोज देर रात तक जलता जले
ऐसी भी क्या हैं ये जिंदगी
क्यों जिये कोई क्यों जीने की दुआ करे

वो जो खवाब हैं चल सब छोड़ दे
शीशे की तरह सब कुछ तोड़ दे
देखे अब हम ये आइना क्यों
क्या लिखा हैं चेहरे पे क्यों पढने की कोशिश बारहा करे

वो जो था और कुछ था भी नहीं
उस वक़्त को कहीं क्यों न छोड़ दे
क्यों देखूं मुड़ के बार बार
जब वो शख्स ही अब न वहा रहा करे

चल जिंदगी कुछ लिख अब फैसला
कोई क्यों रोज रोज इन्तेजार किया करे
होना हैं जो वो तो होना हैं
हर लम्हा फिर क्यों कोई यहाँ मरा करे


पता नहीं मुझे ...

खुद से खुद का मसीहा बनने चला था मैं
अब खुद बन गया हूँ क्या पता नहीं मुझे

बारहा तोड़ता था बनता था कुछ ख्वाब को नए तरीके से
ख्वाब हकीक़त में हो गया क्या पता नहीं मुझे

रोका जब भी देर तलक जज्बातों को दिल में अपने
नुमायाँ होने पे उनके क्या क्या हुआ बर्बाद पता नहीं मुझे

शायद वो इक टक निगाहें आखिरी गुज़ारिश थी उसकी
न रोकने पे मेरे उसका क्या हुआ अंजाम पता नहीं मुझे

वक़्त फिर रहा था छुपता छुपाता कुछ रोज से मुझसे
उसको पता था क्या सब कुछ पता नहीं मुझे