में किससे कहूं कैसे कहूं, बेकसी अपनी।
मैंने खुद के हाथों से , सजाई हैं कब्र अपनी॥
मिलना भी चाहा पर मिल न सका,अजब थी यारों बेखुदी अपनी।
कहा बहुत कुछ मगर कुछ कहा भी नहीं ,सुन के सब खामोश थी जिंदगी अपनी॥
बारहा उससे मिलने गया मिल भी आया मगर, बुझती नहीं अजब थी तिशनगी अपनी॥
लगता हैं यूँ ही गुजरेगी जिंदगी,कटी फटी हैं हाथों की लकीरें अपनी॥
में किससे कहूं कैसे कहूं, बेकसी अपनी।
ReplyDeleteमैंने खुद के हाथों से , सजाई हैं कब्र अपनी॥
Sundar!
Anek shubhkamnaon sahit swagat hai..
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
umda.
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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