रहा पंडत में उम्र भर, अब अंत समय आया हैं।
इक छोटी सी ख्वाहिश सीने में, अब तो मुझे पीने दो॥
कहा किसी को कुछ नहीं,भला बुरा सब सुनता रहा।
थोड़ा ही सही अब मुझे बुरा कहने दो॥
राम-राम मैंने जप किया, जिंदगी भर तप किया।
अब इस ईद में मुझे कुछ मीठी सेवेआं चखने दो॥
कुछ नहीं मुझको ज्ञान था, बस यूँ ही पोथियाँ पठता रहा।
आदमी से ही बैर करता रहा, अब तो मुझे इंसान की तरह जीने दो॥
Saturday, March 20, 2010
ये बहारें फिर भी आएँगी, चाहे हम हो न हो।
ये बहारें फिर भी आएँगी, चाहे हम हो न हो।
ये चाँद तारे यूँ ही जगमगायेंगे ,चाहे हम हो न हो॥
रोज चमकेगा सूरज यूँ ही,शाम के इंतज़ार में।
काम यूँ ही होते रहेंगे, इस बड़े बाज़ार में ॥
बच्चे यूँ ही खिलखिलाएँगे,शाम को इस गली में शोर मचाएंगे।
चौपाल यूँ ही सजेगी, चाय के दौर यूँ ही चलते जाएँगे॥
पतंगे यूँ ही वसंत के आकाश को चूमेंगी, होली उसी हुडदंग से खेली जाएगी.
मोहल्ले में यूँ ही राम लीला होंगी,हर दिवाली गलियां यूँ ही रोशन हो जाएंगी॥
मौत कुछ और नहीं एक और पड़ाव हैं, वहाँ से आगे जाना किसी और गाँव हैं ।
दोस्त मेरे जिंदगी भर यादें मेरी तेरे साथ होंगी ,चाहे हम हो न हो॥
ये चाँद तारे यूँ ही जगमगायेंगे ,चाहे हम हो न हो॥
रोज चमकेगा सूरज यूँ ही,शाम के इंतज़ार में।
काम यूँ ही होते रहेंगे, इस बड़े बाज़ार में ॥
बच्चे यूँ ही खिलखिलाएँगे,शाम को इस गली में शोर मचाएंगे।
चौपाल यूँ ही सजेगी, चाय के दौर यूँ ही चलते जाएँगे॥
पतंगे यूँ ही वसंत के आकाश को चूमेंगी, होली उसी हुडदंग से खेली जाएगी.
मोहल्ले में यूँ ही राम लीला होंगी,हर दिवाली गलियां यूँ ही रोशन हो जाएंगी॥
मौत कुछ और नहीं एक और पड़ाव हैं, वहाँ से आगे जाना किसी और गाँव हैं ।
दोस्त मेरे जिंदगी भर यादें मेरी तेरे साथ होंगी ,चाहे हम हो न हो॥
Friday, March 19, 2010
में वही हूँ जो कल तलक तुम्हारा था
में वही हूँ जो कल तलक तुम्हारा था।
वही जिसके बिना न एक पल तुम्हारा गुज़ारा था॥
वही जो काली रात में सुबह का इशारा था।
वही जो ढलती शाम में सुबह का नज़ारा था॥
वही जिसे देख के तुम इतराया करते थे।
वही जिसे गाहे बगाहे कोई ताज तुम पहनाया करते थे॥
वही जिस पे आ के हर मुश्किल थक जाया करती थी।
वही जिस से हर मंजिल को राह जाती थी॥
वही हाँ वही गुजरे वक़्त का एक अक्स हूँ।
आज का नहीं पर कल का सुनहरा वक़्त हूँ॥
वही जिसके बिना न एक पल तुम्हारा गुज़ारा था॥
वही जो काली रात में सुबह का इशारा था।
वही जो ढलती शाम में सुबह का नज़ारा था॥
वही जिसे देख के तुम इतराया करते थे।
वही जिसे गाहे बगाहे कोई ताज तुम पहनाया करते थे॥
वही जिस पे आ के हर मुश्किल थक जाया करती थी।
वही जिस से हर मंजिल को राह जाती थी॥
वही हाँ वही गुजरे वक़्त का एक अक्स हूँ।
आज का नहीं पर कल का सुनहरा वक़्त हूँ॥
Sunday, March 7, 2010
तुझे भूल नहीं पाती हैं ये आँखे लेकिन
तुझे भूल नहीं पाती हैं ये आँखे लेकिन ।
तेरी तस्वीर इन आँखों में धुंधली तो हुयी हैं॥
लोग कहते हैं गहरे जंख्म भरने नहीं अंसा लेकिन।
इस दिल में उनकी टीस कुछ कम तो हुई हैं ॥
सब कुछ भुला के आज तुम्हारे साथ बैठा हूँ लेकिन ।
महसूस होता हैं कही कुछ कमी तो हुई हैं ॥
आज भी कह लो "शफक" प्यार को दुनिया करती हैं सिजदे लेकिन।
दिल में इन लोगो के वफाओं की कमी तो हुई हैं ॥
तेरी तस्वीर इन आँखों में धुंधली तो हुयी हैं॥
लोग कहते हैं गहरे जंख्म भरने नहीं अंसा लेकिन।
इस दिल में उनकी टीस कुछ कम तो हुई हैं ॥
सब कुछ भुला के आज तुम्हारे साथ बैठा हूँ लेकिन ।
महसूस होता हैं कही कुछ कमी तो हुई हैं ॥
आज भी कह लो "शफक" प्यार को दुनिया करती हैं सिजदे लेकिन।
दिल में इन लोगो के वफाओं की कमी तो हुई हैं ॥
मैंने सोचा था की वो मेरे बिन न जी पायेगा
मैंने सोचा था की वो मेरे बिन न जी पायेगा ।
अफ़सोस के मेरी मौत पे ही टूटा मेरा भरम॥
में करता रहा इन्तेजार के कभी न कभी तो वो आएगा ।
पर गुजरने पे जिंदगी ही टूटा मेरा भरम॥
हद थी मय्यत पे मेरी उसके आने की उम्मीद ।
पर जब लगी मेहँदी उन हाथों पे तब ही टूटा मेरा भरम॥
फिर भी लगा के वो अब भी याद करता होगा मुझको।
पर जब उड़े मेरी तस्वीर के पुर्जे तब ही टूटा मेरा भरम॥
अफ़सोस के मेरी मौत पे ही टूटा मेरा भरम॥
में करता रहा इन्तेजार के कभी न कभी तो वो आएगा ।
पर गुजरने पे जिंदगी ही टूटा मेरा भरम॥
हद थी मय्यत पे मेरी उसके आने की उम्मीद ।
पर जब लगी मेहँदी उन हाथों पे तब ही टूटा मेरा भरम॥
फिर भी लगा के वो अब भी याद करता होगा मुझको।
पर जब उड़े मेरी तस्वीर के पुर्जे तब ही टूटा मेरा भरम॥
Friday, March 5, 2010
में किससे कहूं कैसे कहूं, बेकसी अपनी
में किससे कहूं कैसे कहूं, बेकसी अपनी।
मैंने खुद के हाथों से , सजाई हैं कब्र अपनी॥
मिलना भी चाहा पर मिल न सका,अजब थी यारों बेखुदी अपनी।
कहा बहुत कुछ मगर कुछ कहा भी नहीं ,सुन के सब खामोश थी जिंदगी अपनी॥
बारहा उससे मिलने गया मिल भी आया मगर, बुझती नहीं अजब थी तिशनगी अपनी॥
लगता हैं यूँ ही गुजरेगी जिंदगी,कटी फटी हैं हाथों की लकीरें अपनी॥
मैंने खुद के हाथों से , सजाई हैं कब्र अपनी॥
मिलना भी चाहा पर मिल न सका,अजब थी यारों बेखुदी अपनी।
कहा बहुत कुछ मगर कुछ कहा भी नहीं ,सुन के सब खामोश थी जिंदगी अपनी॥
बारहा उससे मिलने गया मिल भी आया मगर, बुझती नहीं अजब थी तिशनगी अपनी॥
लगता हैं यूँ ही गुजरेगी जिंदगी,कटी फटी हैं हाथों की लकीरें अपनी॥
वो उदासियाँ कहाँ गयी
वो उदासियाँ कहाँ गयी ।
वो नम आँखों से हंसने की अदा कहाँ गयी॥
वो जिंदगी जिसमें दर्द ही दर्द था।
उसकी गमगीन कहानियाँ कहाँ गयी॥
वो सबह उठते ही ख्याल आता था उनका ।
उस ख्याल की फुर्सत कहाँ गयी॥
दूर तक मुड़ मुड़ के जो तू देखता था उनको।
हाय ! तेरी वो मासूम उम्मीद कहाँ गयी॥
वो नम आँखों से हंसने की अदा कहाँ गयी॥
वो जिंदगी जिसमें दर्द ही दर्द था।
उसकी गमगीन कहानियाँ कहाँ गयी॥
वो सबह उठते ही ख्याल आता था उनका ।
उस ख्याल की फुर्सत कहाँ गयी॥
दूर तक मुड़ मुड़ के जो तू देखता था उनको।
हाय ! तेरी वो मासूम उम्मीद कहाँ गयी॥
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