Tuesday, August 9, 2011

रात चांदनी ओढ़ के,दुल्हन सी बन के आयी हैं

रात चांदनी ओढ़ के,
                 दुल्हन सी बन के आयी हैं |
लगता हैं के आज,
                    तू याद कर कुछ मुस्करायी हैं||

दिन भर जो होती रही मुश्किलों से मुलाकात,
                     लगता हैं  रात वो सब कुछ भुलाने आयी हैं|
ये तारे सारे बिखरे मेरे सपने से हैं,
                     लगता हैं समेट उन्हें तू आसमां पे सजा लायी हैं||

महकी हैं हवा किसी खुशुबू से,
                लगता हैं तुझे छु के ये इठलाती आयी हैं|
 इतरा रहा हैं ये चाँद इतना क्यों ,
                लगता हैं तेरी नज़र इसने भी आज पायी हैं||

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