Wednesday, August 24, 2011

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त

इधर उम्मीद हैं उधर हकीक़त,
   सोच रहा हूँ आज किस के साथ सोऊ मैं||

ताक़ रहा हूँ  न जाने कब से इस दरों दीवार को,
   सोच रहा हूँ उजाले या अँधेरे में सोऊ मैं||

जहनो दिल हैं न जाने किस कशमकश में,
   सोच रहा हूँ क्या भूल क्या याद कर सोऊ मैं||

वक़्त हैं के ठहरता नहीं एक पल को जरा,
   सोच रहा हूँ वक़्त को सोचूं  या वक़्त की सोच सोऊ मैं||


Tuesday, August 9, 2011

रात चांदनी ओढ़ के,दुल्हन सी बन के आयी हैं

रात चांदनी ओढ़ के,
                 दुल्हन सी बन के आयी हैं |
लगता हैं के आज,
                    तू याद कर कुछ मुस्करायी हैं||

दिन भर जो होती रही मुश्किलों से मुलाकात,
                     लगता हैं  रात वो सब कुछ भुलाने आयी हैं|
ये तारे सारे बिखरे मेरे सपने से हैं,
                     लगता हैं समेट उन्हें तू आसमां पे सजा लायी हैं||

महकी हैं हवा किसी खुशुबू से,
                लगता हैं तुझे छु के ये इठलाती आयी हैं|
 इतरा रहा हैं ये चाँद इतना क्यों ,
                लगता हैं तेरी नज़र इसने भी आज पायी हैं||

मैंने देखा हैं सितारों को जलते हुए...

मैंने देखा हैं सितारों को जलते हुए,
              जिंदगी के तारो  को इक इक कर टूटते हुए||

टूटती देखी हैं मैंने हज़ारों  ख़वाहिशे,
                   मैंने देखा हैं  बेआबरू प्यार को होते हुए||

 हारी हैं मैंने कई बाजियां जीतते हुए,
                   मैंने देखा हैं चरागों को उम्मीद के बुझते हुए||

कहते हो जिंदगी भर न रहेगा ग़म उसका,
                   मैंने देखा हैं ग़म को जिंदगी बनते हुए||

चाँद कितना चुपचाप निशब्द हैं आज

चाँद कितना चुपचाप निशब्द हैं आज,
                बादलों से घिरा कितना तन्हा हैं आज||

 यूँ तो बह रही हैं छु के मुझको मखमली सी हवा,
                पर न जाने क्यों थोड़ा दिल उदास हैं आज||

याद भी आते हो और चले भी जाते हो,
               आँखों में हल्की सी नमी उतर आयी हैं आज||

 कहे भी किस से और क्या कहे हम ,
                अपनों की भीड़ में बेगाने हो गए हैं आज||

Sunday, August 7, 2011

कभी देखा हैं तुमने...

कभी देखा हैं तुमने ,
                           सूरज को चांदनी में नहाते हुए|
वो तो जलता बस जलता हैं ,
                           रोशनी करने के लिए ||

कभी देखा हैं तुमने,
                         हवा को पेड़ों पे ठहरे हुए|
वो तो चलती हैं बस चलती हैं,
                          खुशुबू फेलाने के लिए||

कभी देखा हैं तुमने ,
                         नदीं को कहीं थमते हुए |
वो तो बहती हैं बस बहती हैं ,
                         प्यास सबकी बुझाने के लिए ||

कभी देखा हैं तुमने,
                          जमीं को आसमां से मिलते हुए |
वो जुदा हैं बस जुदा हैं,
                            इस दुनिया को कायम रखने के लिए ||