Tuesday, January 3, 2012

ऐसी भी क्या हैं ये जिंदगी

अपने गम की खुद से दवा करे
रोज देर रात तक जलता जले
ऐसी भी क्या हैं ये जिंदगी
क्यों जिये कोई क्यों जीने की दुआ करे

वो जो खवाब हैं चल सब छोड़ दे
शीशे की तरह सब कुछ तोड़ दे
देखे अब हम ये आइना क्यों
क्या लिखा हैं चेहरे पे क्यों पढने की कोशिश बारहा करे

वो जो था और कुछ था भी नहीं
उस वक़्त को कहीं क्यों न छोड़ दे
क्यों देखूं मुड़ के बार बार
जब वो शख्स ही अब न वहा रहा करे

चल जिंदगी कुछ लिख अब फैसला
कोई क्यों रोज रोज इन्तेजार किया करे
होना हैं जो वो तो होना हैं
हर लम्हा फिर क्यों कोई यहाँ मरा करे


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