Wednesday, April 24, 2013

चल चले लिखें नयी सहर

चल चले लिखें नयी सहर
रात के पिंजरों को तोड़कर
उन नम हम आँखों को खोजे
दे आने वालें उजालों की उन्हें खबर

चल चले लिखें नयी सहर

चंदा मामा से चल ये कहें
रात भर वो यूँ ही क्यों घूमता रहें
आ के रहें बड़े मैदान के पेड़ पर
रात भर हमारा खेल फिर चलता रहें

चल चले लिखें नयी सहर

देख दुनिया ये कितनी रंगीन हैं
तितलियों के पर भी अजीब हैं
पकड़ता हूँ इतिना संभाल के
फिर रंग देते हैं अंगुलियां ये जान के

चल चले लिखें नयी सहर

आवाजों में इतिना रंज क्यों हैं
न जाने इन्हें हर बात का गम क्यों हैं
देख मैंने तो तोड़कर इस पत्ती को
देख लियें हजारं रंग दिल खोल कर

चल चले लिखें नयी सहर

सच में बड़ा हैं ये तेरा शहर
शायद मेरे गाँव से दो चार गज
हर तरफ परेशान से इंसान से
थक गया हूँ समझातें यहाँ मतलब प्यार के

चल चले लिखें नयी सहर