Saturday, December 29, 2012

illusion of my mind

as your voice lingers in my mind
as pain gains over all dreams of mine
as i run for cover to save what was mine
as the night's darkness add effects to my plight

slowly but surely one thing i'm going to realize
that this love was illusion of my mind

as this life goes on to meet destined end
as this time tells me same truth again
as i try to comprehend which makes a little sense
as this rain and wind pushes me to the brink

slowly but surely one thing i'm going to realize
that this love was illusion of my mind


as world moves on with frantic haste
as i stare into the motions as if amazed
as heart feels everything as if there is no pain
as this music of your smiles burns this soul

slowly but surely one thing i'm going to realize
that this love was illusion of my mind
 

Tuesday, December 25, 2012

पूरे चाँद की रात हैं ढल जायेगी

अपने हुस्न पे यों गुमा  न कर
पूरे चाँद की  रात हैं ढल जायेगी

जिंदगी का सफ़र कहते हैं लम्बा हैं
देख पलक झपकते ही गुजर जाएगी

उस हसीं के दर पे कौन दीवाना हैं
हाय! जान उसकी भी न बख्शी जाएगी

इमां का पक्का कहते हो खुद को शफ़क
उसकों देखोगे तो ये गलती भी सुधर जाएगी

सच्चे दिल को मत तोड़ना  ऐ नादां
वर्ना कयामात से पहले कयामात हो जाएगी 
 

सोचता हूँ

सोचता हूँ ये पिंजरे में बंद पंछी कैसे होंगे
फिर लगता हैं कुछ हम जैसे ही होंगे


रोज ही तो कहता था आँखों से हाल मेरे
सोचता हूँ कभी तो तुमने सुने ही होंगे

अभी अभी लौटा हूँ उस बस्ती से यार
शायद वहाँ कभी इंसान रहते ही होंगे

मानो या न मानो वो बला की हसीन हैं
फरिश्ते भी उसे मुड़ मुड़ के देखते ही होंगे

ठंड इतनी हैं की नब्ज़ जम ही जाये
फुटपाथ पे तो दो  चार मरे ही होंगे

आज गंगा नहाया हूँ बरसों बाद
कुछ बरस के पाप तो धुले ही होंगे

कुछ अच्छे काम  भी कर लूं शफ़क
आज कल तो जहन्नुम के रस्ते भीड़ भरे होंगे
 

Saturday, December 8, 2012

में खुद से कहूं या तुझ से कहूं

में खुद से कहूं या तुझ से कहूं
के अब शायाद तू ही कहें मेरी दास्ताँ
में जो मेरा था कभी  था खुद से नुमा
आज बन गया हूँ तेरा अक्स भर
करता हूँ बस तुझ को बयाँ


 

आसुओं भरी हैं रातें

आसुओं भरी हैं रातें
दिन मेरे जगमगा रहे है
दुनिया हैं बड़ी अजीब ये
सह रहे हैं सब फिर भी मुस्करा रहे है


जाने ये क्या बला है
किसीको यहाँ क्या मिला हैं
किसको मैं कहूं अपना यहाँ
हर चीज़ को ये अपना बतला रहे हैं


न जाने वो लड़ रहे हैं किसी से
मुझे बचा रहे हैं बता रहे हैं
मुझे फिक्र नहीं अपनी जरा भी
फिर भी मुझे मेरी फिक्र जता रहे हैं

अंधेरो से डरते हैं वो
आग हर जगह लगा रहे  हैं
रोशनियों का शहर हैं ये
अंधेरों को न जाने कहाँ  छुपा रहे हैं



 

जाने किस सफर पे हैं ये रूह मेरी

जाने किस सफर पे हैं ये रूह मेरी
क्यों ये खेचती है ओर बस ओर तेरी

डरती है हर पल कही जो होना हैं न हो जाये
जिसको पाया नहीं उसको खोने से डरती हैं  जिस्त मेरी


रोज यादों के चराग जलाती हैं फिर उनकी तपिश से झुलस जाती हैं
यूँ ही खुद को मिटाती है न जाने ये जां किस किये की सज़ा पाती हैं


यों ही मार वक़्त की सहती हैं पल पल जहर क्यों पीती हैं
जो मिली हैं सज़ा गमो में मुस्कराने की उसको निभा के जाने क्या सकूं पाती हैं