Sunday, May 27, 2012

हर बार यही सोचता हूँ...

हर बार यही सोचता हूँ, तुझे देखने के बाद 
कल से नहीं सोचूंगा कुछ ,तुझे देखने के बाद
पर  तमन्ना हैं के छोड़े ही नहीं , सजा ही लेती हैं 
कुछ ख्वाब नये ,रोज तुझे देखने के बाद 

कौन हो तुम तुम ही तो हो

मेरी इन आँखों की चमक
मेरी इन बातों में नमक
रहे जो सीने में वो धड़क

कौन हो तुम तुम ही तो हो
मेरी जाँ ,मेरी जाँ


जिसके आगे हूँ मैं  बेबस
जिसकों सोचू मैं बेसबब
रहे जो मेरे खवाबों में कसक

कौन हो तुम तुम ही तो हो
मेरी जाँ ,मेरी जाँ

जो रंगी हो वो शाम हो
सुबह से लबों पे हैं वो नाम हो
रहे जो हरदम अधूरी सी जिंदगी की वो आस हो

कौन हो तुम तुम ही तो हो
मेरी जाँ ,मेरी जाँ




ऐ जिंदगी मेरी जिंदगी

सुबह की किरणों की तरह से, मेरी पलकों से छन के आ 
अब आ जरा कुछ इस तरह से, के नया सवेरा दिखाने आ 

ऐ जिंदगी मेरी जिंदगी 

रह गए थे कुछ जो फासलें, अब मिटाने उन को आ 
मेरी रूह को उसके खुदा से, अब मिलाने तू हैं आ 

ऐ जिंदगी मेरी जिंदगी

कुछ बात न कर बस साथ चल, कुछ देर ये मेरी राह चल 
जो खो दिया था मैंने पा के भी, था हैं क्या अब ये बताने आ 

ऐ जिंदगी मेरी जिंदगी




Sunday, May 6, 2012

तेरे रूबरू , तेरे रूबरू ...

जो कहना था वो न कह सका 
जो करना था वो न कर सका 
मैं था वही जो मैं था नहीं 
तेरे रूबरू , तेरे रूबरू 

तेरे आने की ख़ुशी भी थी 
तेरे जाने के गम भी थे 
पर चाह के भी न जता सका  
तेरे रूबरू , तेरे रूबरू 


हूँ कशमकश में जी रहा 
हर लम्हा इक आस पे बीत रहा 
बारहा किया इकरार, पर न कर सका 
तेरे रूबरू , तेरे रूबरू 


इन आँखों में हैं जो पढ़ भी लो 
जो लबों तक न आये उसे अब सुन भी लो 
हूँ मैं बेकस, हूँ मैं बेबस 
तेरे रूबरू , तेरे रूबरू 

Tuesday, May 1, 2012

इंसान इक खुदा हो जाने को हैं

कर रहा था कबसे जिसका इंतज़ार 
लगता हैं वो तूफान आने को हैं 
दिल जरा सभल जा जरा 
तेरा ये आसमान सुर्ख हो जाने को हैं 


उम्मीदों का शहर तेरा ये अच्छा हैं मगर 
इक लम्हा उसे अब रोंद जाने को हैं
नाज़ था जिस पे तुझको 
वही अब बस याद बन तडपाने को हैं  


कह न पाया कुछ तू 
अब ये जहां दास्तान सुनाने को हैं 
जा बहा ले आसूं दिल कितने भी अब 
ये बस अब आग ये बुझाने को हैं

क्यों समझती रही दुनिया इंसान मुझकों 
गमे जिंदगी रूह ये पी जाने को हैं 
जहर ये न मिटा पायेगा मुझको 
इंसान इक खुदा हो जाने को हैं 

 

शायद यही मेरी खता हैं ...

समझा  रहा हैं शायद मुझको कुछ वो इशारें से 
और नादान मैं समझ ही न पाऊँ , शायद यही मेरी खता हैं ।।


उम्मीद इतनी हैं के ,हज़ार तूफ़ान भी बुझा न पायें 
और अब भी लड़ रहा हूँ मैं, शायद यही मेरी खता हैं ।।


दिल में हजार उलझन, रूह में हजार पेबंद 
इक भी तुझे न दिखा पाऊँ ,शायद यही मेरी खता हैं ।।


इक तो प्यार किया तुझको अपने वजूद से भी ज्यादा 
और उस पे तुझे भुला न पाऊँ, शायद यही मेरी खता हैं ।।


रह रह के जा रही हैं , इक बार में क्यो न जाये 
हैं जान भी मेरी तेरी याद जैसी, शायद यही मेरी खता हैं ।।