Sunday, September 26, 2010

मुझे न देखते हो तो

मुझे न देखते हो तो,
          देखते हो उस आइने को क्यों|
इतने भी जाहिल हम नहीं,
        पास आतें घबरातें हो क्यों||

मुक्कदर की बात हैं,
    वरना गरीब पैदा कोई हूए ही क्यों|
ठिकाना हो तो न सोयें सड़क पर,
    तुम्हारी आँखों का नासूर बने ही क्यों||

घर में शराब और नहीं,
    वरना एक जाम पर हम रुके हैं क्यों|
आजादी का दिन हैं पर पीने की नहीं,
   ऐसी आजादी से हम उब न जायें क्यों ||

शुक्र कर जन्नत का लालच तो हैं,
    वरना कोई तेरे दर पे आयें क्यों||
"शफक" कितनी मशरूफ हैं दुनियां,
      किसी को खुदा यूँ ही याद आयें क्यों ||

Friday, September 24, 2010

तुम यों ही कह देते

तुम यों ही कह देते,
        हम खुद ही चले जाते||
न जाने क्यों करने पड़े,
      इतने सवाल जवाब तुम्हें ||

आज यों ही याद आ गयी,
    कभी तुम भी खुद आ जातें||
दूरियाँ इतनी तो कभीं न थी,
     के बुलावा भेजकर बुलाना पड़े तुम्हें||

बीत गयी जिंदगी इसी वहम में,
     के हम न होते तो कई काम रूक जातें||
अब हम नहीं हैं,
      और याद भी अब नहीं आतें हम तुम्हें||

आज यूँ ही परेशान नहीं  हूँ,
   वरना क्यों हम मयखाने जाते||
नज़र बदल गयी हैं तुम्हारी "शफ़क",
   शराब दिखती हैं अशक़ आँखों में नहीं तुम्हें||