Tuesday, December 27, 2011

हमने ने रोका आंसुओं

हमने ने रोका आंसुओं को कुछ इस तरह
के देख के खुदा भी टूट कर रो पड़ा


यों तो रहे सफर में हम जिंदगी भर
पर न जाने क्यों मंजिलों से वास्ता नहीं पड़ा


अब क्यों आये कोई मेरे दर पे ऐ खुदा
बहुत दिनों से किसी को हमसे कोई काम नहीं पड़ा

अच्छा बुरा क्या हैं समझ समझ का फेर हैं
शुक्र मना ऐ "शफ़क" तुझे वो फ़ेसला लेना नहीं पड़ा





Sunday, December 25, 2011

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

कोई मासूम न रोये भूखा सड़कों पे कही
कोई माँ झेले न ये दुख इस दुनियां में कही

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

रहें दुनिया में अमनो बहार कायम हर कही
कभी उठे न अमन की दुआ को हाथ कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

रोशनी रोशनी हो खुशियों की हर दिल में कहीं
रह न पायें गम का कोई आसूं इक भी निग़ाह में कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

कबूल हो कबूल हो मेरी दुआ ये कहीं
भर आयें भर आयें  फिर  ख़ुशी ये मेरी आँखें क्यों न कहीं

खुदा करे के इस इस जमीं पे खुदा हो कही

मैं न जाऊं ऐसे...

ऐसे कैसे, मैं न जाऊं ऐसे
तेरे ये दो नैना बांधे हैं न जाने मोहे कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

हर सुबह से रात तक इंतज़ार करूँ
ख़तम हो अब कैसे इंतज़ार मेरा, मैं न जानू कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

ऐसा नहीं के कुछ भी नहीं तू मेरा ऐ सनम
धड़कन अपने दिल की तोहे ऐ खुदा सुनाऊँ कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

चलती रहे या न चले ये दुनिया मेरी अब तेरे बिन
मैं हर पल बैठा बस ये ही सोचूं तुझको अपना मैं अब बनाऊं कैसे

मैं न जाऊं ऐसे -२

Wednesday, December 14, 2011

खुदा ही जानता है

खुदा ही जानता है मुझे और कोई जानता ही नहीं

इतने चेहरों से ढका हैं खुद को मैं भी खुद को अब पहचानता नहीं

मुझ से ही न जाने क्यों

मुझ से ही न जाने क्यों, पूछ रही जिंदगी इतने सवाल क्यों|

रंगी ख्वाब थे जो कल के, लग रहे आज बेरंग दरों दीवार क्यों|

कल तलक तो मैं सबका था, आज सबह से बदले हैं सबके मिजाज़ क्यों|

कहने को क्या हैं कह तो हम कुछ भी दे मगर, आज ही क्यों लियें बेठे हो वो इक बात क्यों |

बेदम हो के रह गए अनजानों की तरह जब निकले तुम, पूछ भी न पाए के लगते हो इतने परेशान क्यों |

चल दर्द का कारोबार करें

चल दर्द का कारोबार करें, लिखूं मैं कुछ दर्द भरा|
तू उसको कोई साज़ दे , उम्मीद की नयी आवाज़ दे|


चल सबाब का कुछ काम करें, मये गम को इक नया जाम दे|
हैं कितने तन्हा यहाँ कितने लोग, उनकी तनहाइयों को इक रंगी शाम दे|

चल चले इस शोरो-गुल से दूर, रोशनियों भरे इस जहां से दूर|
अंधेरों में उजालों की सोचे, इन रातों को नया आफ़ताब दे|

Wednesday, December 7, 2011

लगता हैं ...

लगता हैं मयकदों में ही गुजरेगी ये जिंदगी
जब भी हम होश में आये तो हमें गम ही मिले

मुस्करायें जब भी पल दो पल के लिए
मेरे जिस्मों जां  को बस दर्द ही मिले

कौन जाने कहाँ जाएगी ये जिंदगी अपनी
जब भी सफ़र पे निकले तो हमें हादसे ही मिले

मैं क्या जानू "शफ़क" के क्या खता थी मेरी
हमने जब भी देखा उन्हें तो वो  हमसे खफ़ा ही मिले

हाँ ...

हाँ दर्द हैं इक प्यास हैं
के कुछ अनकही सी रह गयी जिंदगी


हाँ आस हैं झूठी सी हैं
के कुछ अध्रूरी सी रह गयी जिंदगी

हाँ शिकायतें हैं खुद ही से हैं
के कुछ बेनूर सी रह गयी जिंदगी

Monday, December 5, 2011

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

साफ़ करता हूँ जब भी शीशे पे जमी रात की ओंस को

मन करता हैं तेरा नाम लिखूं उसपे , अपनी जिंदगी की तरह

फिर रोक लेता हूँ खुद को कुछ सोच हमेशा

याद आ ही जाती हैं हकीकत,  मुझे हर सबह की तरह

मुस्कराता हूँ देता हूँ हल्की चोट सर को अपने हाथों से

मुड़ता हूँ कुछ कदम हट के पीछे , चलता हूँ फिर करने दुनिया को सलाम हमेशा की तरह

मैं तेरी खामोशियों को चुनता हूँ

मैं तेरी खामोशियों को चुनता हूँ
                                फिर नए ख़वाब कुछ बुनता हूँ  मैं
देखता हूँ जब जब तेरी आँखों में बेरुखी
                                  तब तब अंजाम को अपने फिर से लिखता हूँ  मैं


खीचता हूँ कागज पे लकीरें
                                      तो हर बार कुछ खालीपन भरता हूँ मैं
जब देखता हूँ गौर से क्या भरा
                                       तो तुझको ही लिखा पाता हूँ मैं


हूँ भी और शायद हूँ भी नहीं
                                     बस इतना हूँ के कुछ नहीं तेरा हूँ मैं
फिर न जाने क्यों कभी कभी
                                        खवाबों में देख तुझे जिंदगी जी लेता हूँ मैं

कुछ ओंस की बूंदे लाया हूँ मैं तेरे लिए

कुछ ओंस की बूंदे लाया हूँ मैं तेरे लिए
प्यार से चुपचाप से छींट दूँगा आँखों में तेरी तुझे जगाने के लिए

कबसे यूँ ही देखता हूँ मैं तुझे सोते हुए
हल्की सी मुस्कान आती है चली जाती हैं चेहरे पे तेरे

क्या पता देखा हो तुने मुझे खवाबों में तेरे
या जान के कर रही हैं ये तू मुझे सताने के लिए

मन तो ये करता हैं के बस यूँ ही देखता रहूँ तुझे
इतेमनान से पल पल जीता रहूँ जिंदगी भर जिंदगी तेरे लिए

शब्द नहीं हैं और हैं भी तो कम हैं तुझे सब कुछ समझाने को
तू कौन हैं क्या हैं मेरे लिए दिल खोल के तुझे बताने के लिए