कभी न कभी सोचेगा वो मेरी बात,
जाने क्यों गुजरती नहीं काली रात||
जितना जिया तन्हा जिया नहीं मिला तेरा साथ,
और जो मिला उसकी न थी कभी प्यास||
कैसे कहें क्या हम कहें जो तुम चलों मेरे साथ ,
उम्मीद जरा बाकी सी हैं लड़ता हूँ रोज अपने ही साथ||
अच्छा हुआ या बुरा छोड़ो तुम ये बात,
गम है के अब वो मुस्कराता नहीं मुझे देखने के बाद||