उम्मीद की राहों में भटकता हूँ आज भी|
क्या करूं तुझसे में मोहब्बत करता हूँ आज भी||
छोड़ दी हैं मैंने मयकशी यारों|
फिर भी मयखाने में पहरों बैढता हूँ आज भी||
मेरा खुदा से खुदा का मुझसे नाता नहीं कोई|
पर उसके सितम की शिकायत करता हूँ आज भी||
खायी हैं उसकी कसम के न रोऊँगा कभी|
पर हंसते हुए छलक आते हैं अश्क आज भी||
शेर अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई
ReplyDeletebahut achchha likha hai yaar
ReplyDeletebadhai bahut bahut