तुम यों ही कह देते,
हम खुद ही चले जाते||
न जाने क्यों करने पड़े,
इतने सवाल जवाब तुम्हें ||
आज यों ही याद आ गयी,
कभी तुम भी खुद आ जातें||
दूरियाँ इतनी तो कभीं न थी,
के बुलावा भेजकर बुलाना पड़े तुम्हें||
बीत गयी जिंदगी इसी वहम में,
के हम न होते तो कई काम रूक जातें||
अब हम नहीं हैं,
और याद भी अब नहीं आतें हम तुम्हें||
आज यूँ ही परेशान नहीं हूँ,
वरना क्यों हम मयखाने जाते||
नज़र बदल गयी हैं तुम्हारी "शफ़क",
शराब दिखती हैं अशक़ आँखों में नहीं तुम्हें||
Aah ! Aisibhi dooriyan badh jatee hain...aur phir badhtee hee chali jatee hain...duniyaka dastoor hee kuchh aisa hai.
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