Monday, January 7, 2013

न जाने क्यों

मेरी हसरतों में बस गयी हैं तू
और जाती भी नहीं हैं न जाने क्यों


मेरी जिंदगी में रच बस गयी हैं तू
और न ये जिंदगी उजड़ती  हैं न जाने क्यों


ख्वाब तो देखे थे मगर जीने की रही न कोई ख्वाहिश उनको
तेरा  इंतज़ार तेरे बाद भी ख़तम न हुआ न जाने क्यों


कौन समझा पाता  हमें जब समझना ही हम न चाहे
दिखी रही थी हक़ीकत हर पल पर हुआ न मैं रूबरू न जाने क्यों


अब जब हैं बस तन्हाइयां सिर्फ चुपचाप सी तन्हाइयां
जिंदगी बन गयी हैं सवाल सी न जाने क्यों




 

No comments:

Post a Comment