Sunday, August 29, 2010

उम्मीद की राहों में भटकता हूँ आज भी

उम्मीद की राहों में भटकता हूँ आज भी|
क्या करूं तुझसे में मोहब्बत करता हूँ आज भी||

छोड़ दी हैं मैंने मयकशी यारों|
फिर भी मयखाने में पहरों बैढता हूँ आज भी||

मेरा खुदा से खुदा का मुझसे नाता नहीं कोई|
पर उसके सितम की शिकायत करता हूँ आज भी||

खायी हैं उसकी कसम के न रोऊँगा कभी|
पर हंसते हुए छलक आते हैं अश्क आज भी||

2 comments:

  1. शेर अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई

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  2. bahut achchha likha hai yaar
    badhai bahut bahut

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