Tuesday, May 1, 2012

इंसान इक खुदा हो जाने को हैं

कर रहा था कबसे जिसका इंतज़ार 
लगता हैं वो तूफान आने को हैं 
दिल जरा सभल जा जरा 
तेरा ये आसमान सुर्ख हो जाने को हैं 


उम्मीदों का शहर तेरा ये अच्छा हैं मगर 
इक लम्हा उसे अब रोंद जाने को हैं
नाज़ था जिस पे तुझको 
वही अब बस याद बन तडपाने को हैं  


कह न पाया कुछ तू 
अब ये जहां दास्तान सुनाने को हैं 
जा बहा ले आसूं दिल कितने भी अब 
ये बस अब आग ये बुझाने को हैं

क्यों समझती रही दुनिया इंसान मुझकों 
गमे जिंदगी रूह ये पी जाने को हैं 
जहर ये न मिटा पायेगा मुझको 
इंसान इक खुदा हो जाने को हैं 

 

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