Tuesday, May 1, 2012

शायद यही मेरी खता हैं ...

समझा  रहा हैं शायद मुझको कुछ वो इशारें से 
और नादान मैं समझ ही न पाऊँ , शायद यही मेरी खता हैं ।।


उम्मीद इतनी हैं के ,हज़ार तूफ़ान भी बुझा न पायें 
और अब भी लड़ रहा हूँ मैं, शायद यही मेरी खता हैं ।।


दिल में हजार उलझन, रूह में हजार पेबंद 
इक भी तुझे न दिखा पाऊँ ,शायद यही मेरी खता हैं ।।


इक तो प्यार किया तुझको अपने वजूद से भी ज्यादा 
और उस पे तुझे भुला न पाऊँ, शायद यही मेरी खता हैं ।।


रह रह के जा रही हैं , इक बार में क्यो न जाये 
हैं जान भी मेरी तेरी याद जैसी, शायद यही मेरी खता हैं ।।







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