समझा रहा हैं शायद मुझको कुछ वो इशारें से
और नादान मैं समझ ही न पाऊँ , शायद यही मेरी खता हैं ।।
उम्मीद इतनी हैं के ,हज़ार तूफ़ान भी बुझा न पायें
और अब भी लड़ रहा हूँ मैं, शायद यही मेरी खता हैं ।।
दिल में हजार उलझन, रूह में हजार पेबंद
इक भी तुझे न दिखा पाऊँ ,शायद यही मेरी खता हैं ।।
इक तो प्यार किया तुझको अपने वजूद से भी ज्यादा
और उस पे तुझे भुला न पाऊँ, शायद यही मेरी खता हैं ।।
रह रह के जा रही हैं , इक बार में क्यो न जाये
हैं जान भी मेरी तेरी याद जैसी, शायद यही मेरी खता हैं ।।