उम्मीद की राहों में भटकता हूँ आज भी|
क्या करूं तुझसे में मोहब्बत करता हूँ आज भी||
छोड़ दी हैं मैंने मयकशी यारों|
फिर भी मयखाने में पहरों बैढता हूँ आज भी||
मेरा खुदा से खुदा का मुझसे नाता नहीं कोई|
पर उसके सितम की शिकायत करता हूँ आज भी||
खायी हैं उसकी कसम के न रोऊँगा कभी|
पर हंसते हुए छलक आते हैं अश्क आज भी||
Sunday, August 29, 2010
इश्क का सबब हैं क्या,क्या बताएं तुझे|
इश्क का सबब हैं क्या,क्या बताएं तुझे|
पढ़ ले मेरी आँखों में, क्या जताएं तुझे ||
बहुत बार कर चुका हूँ इक्क्रार|
पूछ ले आईने से क्या बताये तुझे||
समंदर हो छुपा अश्क बहते हैं यों|
छांक ले इन आँखों में क्या दिखाएँ तुझे||
न तेरे मिलने पे दिल रोता हैं यों |
सुन ले अजाब का शोर क्या सुनाएँ तुझे||
पढ़ ले मेरी आँखों में, क्या जताएं तुझे ||
बहुत बार कर चुका हूँ इक्क्रार|
पूछ ले आईने से क्या बताये तुझे||
समंदर हो छुपा अश्क बहते हैं यों|
छांक ले इन आँखों में क्या दिखाएँ तुझे||
न तेरे मिलने पे दिल रोता हैं यों |
सुन ले अजाब का शोर क्या सुनाएँ तुझे||
Saturday, August 28, 2010
THE SUN OF EAST
A country which is far more vast then some of us can ever think .
Five thousand years of civilization but still don't know where to go.At crossroads searching for Gods in everything even in stones.
A river runs through thousand kilometers of unprivileged land before vanishing in to sea... i don't know whether it is her destiny or a way to escape from all the mess.
one billion people trying to make something which was never there a country .. a nation .
Taking proud in everything which is acknowledged worldwide and remotely linked to us... Nobel prize, an Oscar. anything will do to make us sing JAI HO.
Seeing all this all these years, i have questioned myself why do we need this kind of signs?
Don't we have that kind of talent which can do some research which bags Nobel, which can bag Oscar ?Are we so desperate that a man or woman of Indian origin bags a Nobel and we pounce on it as our achievement as a nation?Does talking about ARYABHATTA and RAMANUJAM really make any difference to where we stand today or will stand tomorrow?
yes,agreed that we should remember them as greats ... but mere discussing their achievements is not going to change anything for us. Isn't it a right time to force our politicians to come up with some bright ideas on how to generate more scientist,scholars.As of now we are not facing any problem of investments, we seems to be doing very good in all aspects of economy. Can we sustain all this growth without doing good research work ourselves?
i don't think so. So whats the way forward? that should be a big question on everyone's mind.
what we need to do differently as nation? certainly, we can't imitate as our needs are different.
i think first we need to do is to realize that we don't need to be America or UK to be successful. They have different circumstances and we have different.
Here i think thoughts of Gandhi might still be relevant today like empowerment of weaker section of society, empowerment of our villages and importance of swaraj.
I personally would like to see a true panchayati raj in India. some may argue that its a sure shot recipe of a disaster but i don't think so. Anyway we need to believe in our people to be successful.
when empowerment reaches to rural India only then people of India will be confident enough to say yes we can do it.
After all they are the people who votes for them let them answer them and once and when this happen i think it will change India from being accepting anything to accepting only Quality life.
Saturday, August 14, 2010
देखता हूँ रोज आईने में इक शख्श को.
देखता हूँ रोज आईने में इक शख्श को.
कहा से आया कौन हैं मुझे क्या पता ..
बना क्यों हैं मेरा हमसाया वो.
लगता हैं मुझ सा पर में तो ऐसा नहीं था..
जिंदगी की दौड़ में अपनी सी ही किसी होड़ में .
में अकेला था मगर इतना अकेला नहीं था..
क्या बनने चला था क्या बन गया हूँ में .
कुछ-कुछ ऐसा ही था पर सपना मेरा ऐसा नहीं था..
आती हैं याद क्यों तेरी हर बात वो अब मुझे.
बेबस हुआ हूँ में पहले भी मगर इतना में बेबस नहीं था..
.
कहा से आया कौन हैं मुझे क्या पता ..
बना क्यों हैं मेरा हमसाया वो.
लगता हैं मुझ सा पर में तो ऐसा नहीं था..
जिंदगी की दौड़ में अपनी सी ही किसी होड़ में .
में अकेला था मगर इतना अकेला नहीं था..
क्या बनने चला था क्या बन गया हूँ में .
कुछ-कुछ ऐसा ही था पर सपना मेरा ऐसा नहीं था..
आती हैं याद क्यों तेरी हर बात वो अब मुझे.
बेबस हुआ हूँ में पहले भी मगर इतना में बेबस नहीं था..
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Tuesday, August 10, 2010
उन्ही से में रुखसत ले के चला हूँ
उन्ही से में रुखसत ले के चला हूँ ।
जिनके साथ जिंदगी गुजरने की ख्वाहिश करी थी॥
बड़ी बेवजह वोह वजह हैं यारों।
न पूछों के क्या उसने गुजारिश करी थी॥
जिन्दा हूँ में जिंदगी चाहे कैसे भी जी लूँ।
न सोचों की कैसी हमने चाहत करी थी॥
खुदा तेरा ही कर्म हैं जो आज तेरे दर आया हूँ।
वरना मैंने तो कई बरसों किसी और की इबादत करी थी॥
जिनके साथ जिंदगी गुजरने की ख्वाहिश करी थी॥
बड़ी बेवजह वोह वजह हैं यारों।
न पूछों के क्या उसने गुजारिश करी थी॥
जिन्दा हूँ में जिंदगी चाहे कैसे भी जी लूँ।
न सोचों की कैसी हमने चाहत करी थी॥
खुदा तेरा ही कर्म हैं जो आज तेरे दर आया हूँ।
वरना मैंने तो कई बरसों किसी और की इबादत करी थी॥
चले आज तुमको भुला के कहीं को
चले आज तुमको भुला के कहीं को।
न जाने कहाँ अब जायेंगे हम॥
इबादत करी थी दिल से तुम्हारी ।
न जाने खुदा किसे अब बनायेंगे हम॥
कह दो के मजबूरी तुम्हारी बहुत थी ।
वरना घुट घुट के मर जायेंगे हम॥
चलो आज खुद से वादा में कर लूँ।
कभी भूले से भी न अब याद आयेंगे हम॥
न जाने कहाँ अब जायेंगे हम॥
इबादत करी थी दिल से तुम्हारी ।
न जाने खुदा किसे अब बनायेंगे हम॥
कह दो के मजबूरी तुम्हारी बहुत थी ।
वरना घुट घुट के मर जायेंगे हम॥
चलो आज खुद से वादा में कर लूँ।
कभी भूले से भी न अब याद आयेंगे हम॥
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